जैसे चिड़ियों की उड़ान में
शामिल होते हैं पेड़
क्या मुसीबत में
कविताएं होंगी हमारे साथ
जैसे युद्ध में काम आए सैनिक के
शस्त्रों और वर्दी के साथ-साथ
खून में डूबी मिलती हैं उसके बच्चों की तस्वीर
क्या कोई पंक्ति डूबेगी खून में
जैसे चिड़ियों की उड़ान में शामिल होते हैं पेड़
मुसीबत के वक़्त
कौन सी कविताएं होंगी हमारे साथ
लड़ाई के लिए उठे हाथों में
कौन से शब्द होंगे
(मार्च-अप्रैल १९९२ में राजेश जोशी के संपादन में छपे वर्तमान साहित्य के कविता विशेषांक से)
6 comments:
जैसे चिड़ियों की उड़ान में शामिल होते हैं पेड़
मुसीबत के वक़्त
कौन सी कविताएं होंगी हमारे साथ!
बहुत ही सुन्दर भाव हैं ....हमारे लिए कवितायेँ कितनी ज़रूरी हैं और चिड़िया क़ी उड़ान में पेड़ के शामिल होने की तरह ही कवितायेँ भी हमारे साथ साथ होंगी ..नरेश जी क़ी इस . कविता का हर अक्षर इस बेवक्त समय में बेहद जरूरी है ठीक वैसे ही जैसे कविता !
कविताये सदा ही साथ रहेंगी, हमारी।
अच्छी कविता , वर्तमान साहित्य का यह अंक याद है ।
नरेश जी कि यह कविता मेरी कुछ प्रिय कविताओं में से है।
बहुत बड़े और प्रासंगिक प्रश्न खड़े करती है ये कविता
--मुसीबत के वक़्त
कौन सी कविताएं होंगी हमारे साथ
लड़ाई के लिए उठे हाथों में
कौन से शब्द होंगे
---हम ( अगर मै भी खुद को कवि कहने कि भ्रान्ति पाल सकूँ तो ..) कितने और किसके लिए प्रतिबद्ध हैं ?? क्यों करते हैं कविताई ?? और सबसे दीगर
प्रश्न इन कविताओं के कुछ सामाजिक सरोकार भी हैं या सिर्फ शब्दों का खिलवाड़ भर हैं ...
बेहतरीन कविता है यह...
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