Saturday, December 31, 2011

रघुवीर सहाय की एक कविता



औरत की ज़िंदगी
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कई कोठरियाँ थीं कतार में
उनमें किसी में एक औरत ले जाई गई
थोड़ी देर बाद उसका रोना सुनाई दिया

उसी रोने से हमें जाननी थी एक पूरी कथा
उसके बचपन से जवानी तक की कथा
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रघुवीर सहाय (९ दिसंबर १९२९-३० दिसंबर १९९०)
चित्र-  अंजलि इला मेनन की पेंटिंग

3 comments:

अजेय said...

.

वर्षा said...

हूं.. पहले भी कई बार पढ़ चुकी हूं, डर लगता है..

परमेन्द्र सिंह said...

मार्मिक कविता!