रामचंद्र गुहा के बेसिक्स में ही कोई प्रॉब्लम है या एक सधी हुई चतुरता। उन्होंने संघ प्रमुख मोहन भागवत के नागपुर भाषण को दूरदर्शन पर लाइव करने की आलोचना की। उन्होंने ट्वीट किया,`आरएसएस एक सांप्रदायिक हिंदू संगठन है। अगली बार मस्जिद के इमाम, चर्च के पादरी भी लाइव स्पीच दिखाने की बात करेंगे।'
गुहा पहली लाइन में जो बात बोल रहे हैं, अगली लाइन में उस बात को सिर के बल खड़ा कर देते हैं। आरएसएस एक साम्प्रदायिक हिंदू संगठन है, ठीक है। आगे इस लाइन का क्या मतलब है-`अगली बार मस्जिद के इमाम, चर्च के पादरी भी लाइव स्पीच दिखाने की बात करेंगे।` क्या गुहा मस्जिद और चर्च को साम्प्रदायिक संस्था मानते हैं या फिर आरएसएस को मंदिर? संघ तो खुद को किसी भी हिंदू धर्माचार्य या धार्मिक संस्था से ज्यादा आधिकारिक हिंदू घोषित करता ही है। उसने अपने धर्माचार्य औऱ धर्म संसद खड़ी की। साम्प्रदायिकता से असहमत धर्माचार्यों को खारिज किया। गुहा उसे इसी तरह मान्यता देते दिखाई देते हैं। गुहा जितना संघ पर हमला नहीं करते हैं, उससे ज्यादा मस्जिद, चर्च औऱ इमाम, पादरी को कठघरे में खड़ा कर संघ के एजेंडे पर मुहर लगाते हैं।
ऐसा भी नहीं है कि गुहा धर्म और उसकी संस्थाओं को सिरे से खारिज करने वाले, उन्हें ही साम्प्रदायिकता की जड़ मानने वाले और नास्तिकता में विश्वास रखने वाले विद्वान हैं। ऐसा होता भी तो भी संघ पर बात करते हुए मस्जिद-चर्च पर कूद पड़ना हैरान ही करता। एक अजीब तरीका यह रहा है कि जब संघ की साम्प्रदायिकता की बात करो तो हर हाल में किसी मुस्लिम औऱ चाहो तो ईसाई कट्टर संगठन की भी निंदा जरूर करो। यहां गुहा इस परंपरा से कई कदम आगे बढ़ गए हैं और संघ की आलोचना में एक लाइन बोलकर सीधे मस्जिद के इमाम और चर्च के पादरी को घसीट लेते हैं। गुहा जी बेफिक्र रहिए, इमाम और पादरी ऐसी कोई मांग नहीं करने जा रहे हैं, होने दीजिए भागवत को दूरदर्शन पर लाइव!
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