Tuesday, September 29, 2015

एक अपराजेय का जाना : मंगलेश डबराल


अब ऐसे लोगों का होना बहुत कम हो गया है, जिनसे, बकौल शमशेर बहादुर सिंह, ‘जिंदगी में मानी पैदा होते हों।’ वीरेन डंगवाल ऐसा ही इंसान था, जिससे मिलना जीवन को अर्थ दे जाता था। वीरेन पहली भेंट में अपनी नेकदिली की छाप मिलने वाले के दिल में छोड़ देता था। वह प्रसन्नता की प्रतिमूर्ति था-दोस्तों की संवेदना को सहलाता हुआ, उन्हें धीरज बंधाता हुआ। यह उसकी जीवनोन्मुखता ही थी कि तीन साल तक वह कैंसर से बहादुरी के साथ लड़ता रहा। बीमारी के दिनों में उसे देख हेमिंग्वे के उपन्यास द ओल्ड मैन ऐंड द सी का यह वाक्य याद आता था कि ‘मनुष्य को नष्ट किया जा सकता है, पर उसे पराजित नहीं किया जा सकता।’ वीरेन चला गया, पर यह जाना एक अपराजेय व्यक्ति का जाना है।
वीरेन के जीवन पर यह बात पूरी तरह लागू होती थी कि एक अच्छा कवि पहले एक अच्छा मनुष्य होता है। कविता वीरेन की पहली प्राथमिकता भी नहीं थी, बल्कि उसकी संवेदनशीलता और इंसानियत के भविष्य के प्रति अटूट आस्था का ही एक विस्तार, एक आयाम थी, उसकी अच्छाई की महज एक अभिव्यक्ति और एक पगचिह्न थी। तीन संग्रहों में प्रकाशित उसकी कविताएं अनोखी विषयवस्तु और शिल्प के प्रयोगों के कारण महत्वपूर्ण हैं, जिनमें से कई जन आंदोलनों का हिस्सा बनीं। उनकी रचना एक ऐसे कवि ने की है, जो कवि-कर्म के प्रति बहुत संजीदा नहीं रहा। यह कविता मामूली कही जाने वाली चीजों और लोगों को प्रतिष्ठित करती है, और इसी के जरिये जनपक्षधर राजनीति भी निर्मित करती है।
वीरेन की कविता एक अजन्मे बच्चे को भी मां की कोख में फुदकते रंगीन गुब्बारे की तरह फूलते-पिचकते, कोई शरारत भरा करतब सोचते हुए महसूस करती है, दोस्तों की गेंद जैसी बेटियों को अच्छे भविष्य का भरोसा दिलाती है और उसका यह प्रेम मनुष्यों, पशुओं, पक्षियों, वनस्पतियों, फेरीवालों, नींबू, इमली, चूने, पाइप के पानी, पोदीने, पोस्टकार्ड, चप्पल और भात तक को समेट लेता है। वीरेन की संवेदना के एक सिरे पर शमशेर जैसे क्लासिकी ‘सौंदर्य के कवि’ हैं, तो दूसरा सिरा नागार्जुन की देशज, यथार्थपरक कविता से जुड़ता है। दोनों के बीच निराला हैं, जिनसे वीरेन अंधेरे से लड़ने की ताकत हासिल करता रहा। उसकी कविता पूरे संसार को ढोनेवाली/नगण्यता की विनम्र गर्वीली ताकत की पहचान करती हुई कविता है, जिसके विषय वीरेन से पहले हिंदी में नहीं आए। वह हमारी पीढ़ी का सबसे चहेता कवि था, जिसके भीतर पी टी उषा के लिए जितना लगाव था, उतना ही स्याही की दावात में गिरी हुई मक्खी और बारिश में नहाए सूअर के बच्चे के लिए था। एक पेड़ पर पीले-हरे चमकते हुए पत्तों को देखकर वह कहता है, पेड़ों के पास यही एक तरीका है/यह बताने का कि वे भी दुनिया से प्यार करते हैं। मीर तकी मीर ने एक रुबाई में ऐसे व्यक्ति से मिलने की ख्वाहिश जाहिर की है, जो ‘सचमुच मनुष्य हो, जिसे अपने हुनर का अहंकार न हो, जो कुछ बोले, तो पूरी दुनिया सुनने को इकट्ठा हो जाए और जब वह खामोश हो, तो लगे कि दुनिया खामोश हो गई है।’ वीरेन की शख्सियत कुछ ऐसी ही थी, जिसके खामोश होने से जैसे एक दुनिया खामोश हो गई है।
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(अमर उजाला से साभार)

वीरेन डंगवाल की याद कचोटती रहेगी : शिवप्रसाद जोशी


 
साठ के दशक के फ़ौरन बाद की हिंदी कविता के जिन कवियों का नई पीढ़ी से सबसे ज़्यादा नाता थाः वो त्रयी वीरेन डंगवाल, असद ज़ैदी और मंगलेश डबराल की रही है.

वीरेन ठिकानेदारों को ठिकाने लगाने वाले कवि थे. उन्होंने कई मतलबियों, नकलचियों और चतुरों के तेवर उतारे हैं. उनकी बातों में इतनी तीक्ष्णता और इतना पैनापन और इतना आवेग था.

हिंदी कविता में वो मोमेंटम के सबसे बड़े कवि थे. उनके न रहने से सबसे ज़्यादा नुकसान नई पीढ़ी को हुआ है.
अपनी बातों, अपनी कविता, अपनी सलाहों और अपनी झिड़कियों से वे एक पेड़ बन गए थे. उस पेड़ की छांह अब स्मृति में चली गई है.

वीरेन डंगवाल ने उत्तर भारत की हिंदी पत्रकारिता को भाषा और व्यक्ति दोनो दिए. उनके शागिर्दों का एक अभूतपूर्व फैलाव है. वे प्रिंट से लेकर टीवी और रेडियो तक बिखरे हुए हैं. उनमें से कई लोग अत्यन्त कामयाब जीवन में आए हैं और एक भव्य भविष्य की ओर उन्मुख हैं. वे भी आज वीरेन के न रहने पर निश्चित ही चुपके चुपके रो न भी रहे हों तो एक असहाय धक्के में आ गए होंगे. ये धक्का वे निकाल नहीं पाएंगें. ऐसी उपस्थिति की शर्त के साथ वीरेन ने अपनी शख़्सियत का जादू फैलाया था.

वीरेन लटकी हुई कथित उदासियों पर गुलेल खींच कर भौंचक करने वाले कवि पत्रकार थे. वो नकली नैराश्य के विरोधी थे और उन्होंने एक अपना मार्क्सवाद विकसित किया था. वीरेन की आवाज़ एक ऐसी नाव थी जो मुसीबत के मारों को किनारे छोड़ आती थी. फिर वो मुसीबत प्रेम करने वालों की हो या नौकरी के लिए दर दर भटकने वालों की या सामाजिक लड़ाइयों में इंतज़ार की.

इस तरह उन्होंने संघर्ष को एक लोकप्रिय विधा में बदल दिया.

उन्हें समझने वालों और उन्हें मानने वालों ने संघर्ष के पानी से प्यास बुझाई. ऐसा विवेक भरने वाले वीरेन डंगवाल, इसीलिए स्मृति को कचोटते रहेंगें.