Saturday, March 2, 2019

गाली और बुद्धिजीवी : अमोल सरोज





(देशभक्ति के नाम पर `संस्कारी टोले` सड़कों पर `दुश्मन` की माँ-बहन की गालियां निकालते हुए घूम रहे थे। हर प्रतिरोधी विचार को बल्कि हर असहमत को इस तरह गालियों से नवाज़ना उनका चलन है। हद की बात यह है कि गालियां देने का महिमामंडन करने में अनेक बुद्धिजीवी पीछे नहीं रहते हैं। वे बाकायदा `तर्कशास्त्र` के साथ पेश होते हैं। इस प्रवृत्ति पर अमोल सरोज का पढ़े जाने लायक़ व्यंग्य।)

गाली और बुद्धिजीवी 

संवाद एक 
श्रीमान आपने कमेंट में गाली लिखी हुई है, कृपया इसे हटा दीजिये। 
बुद्धिजीवी - ये इतना सहज और आसान मसला नहीं है। मैं एक दिन तफ़सील से लेख लिखूँगा गालियों पर। 

संवाद दो 
सर एक सार्वजानिक प्लेटफॉर्म पर गाली देना कितना सही है ?
बुद्धिजीवी- देखिये, इसके कई मायने हैं। मतलब क्या आप ये कहना चाहते हैं कि प्राइवेट स्पेस में गाली दी जा सकती हैक्या मैं आप से पूछ सकता हूँ कि प्राइवेट स्पेस में गाली देने की छूट क्यों देना चाहते हैंइसका मतलब तो ये है कि हम पब्लिक में कुछ हैं और प्राइवेट में कुछ औइसका मतल आप प्राइवेटाइजेशन को बढ़ावा देना चाहते हैं।

सर मैंने ऐसा तो कुछ नहीं कहा। 
बुद्धिजीवी - बिलकुल कहा। सरासर कहा। तुम्हें अभी नहीं समझ आएगा। मैं एक लम्बा लेख लिख कर समझाऊंगा। दरअसल गाली को पाद समझो। लोग तो पाद के वक़्त भी बुरा मुंह बनाते हैं। अब पाद आएगा तो करना पड़ेगा। ऐसे ही गाली का है। समझ आया कुछ?
जी समझ तो नहीं आया। बदबू ज़रूर आयी। 

संवाद तीन 
सर, ये गाली महिलाविरोधी... 
 बुद्धिजीवी - देखिये आप लोग अपनी एनर्जी बेवजह खर्च कर रहे हैं। गाली को नहीं, भावना को देखना चाहिए। ऐसे तो कुत्ता भी गाली होता है। आप लोग बोलते है या नहींदोस्तों में भावना देखी जाती है, गाली नहीं। 
सर कुत्ता और औरत में तो फ़र्क़ होता है। कुत्ता हमारी ज़ुबान नहीं समझता। उसे फ़र्क़ भी नहीं पड़ता। क्या आप ये कहना चाहते हैं कि स्त्री और पशु में फ़र्क़ नहीं है? 
बुद्धिजीवी - देखो तुम अब आउट ऑफ़ द कॉन्टेक्स्ट बात कहके मुझे घेरने की कोशिश कर रहे हो। निहायत ही वाहियात बात कही है तुमने। तुम्हें शर्म आनी चाहिए। शर्म ही नहीं तुम्हें तो डूब मरना चाहिए। तुम एक नंबर के मूर्ख होमूड होगधे हो  ऐसे किसी को घेर कर मॉब लिंचिंग करना कहाँ तक सही है
जी समझ गए। 

संवाद चार 

सर फिर भी... 
बुद्धिजीवी – देखिये, मैं आपकी भावना समझता हूँ पर आप अज्ञानता की बात कर रहे हैं। मैं आपको बताता हूँ। इस शब्द का मतलब वो नहीं है जो सारा देश समझता है। इस शब्द का भाषा विज्ञान देखोगे तो आपको बहुत कुछ मिलेगा। सं 550 इसवीं में इस का मतलब जो हुआ करता था, वो बिल्कुल अलग था। शब्द की उत्पति पर गौर करेंगे तो आप ये बात नहीं कह पाएंगे जो अभी कह रहे है। फिर भी अगर आपकी भावना हर्ट हुई है तो मैं उसके लिए माफ़ी मांगता हूँ। आप ये लेख पढ़िए, इससे आपके संदेह का निवारण हो जाना चाहिए। 

जी मैं बिना पढ़े ही समझ गया। बहुत शुक्रिया। 

संवाद 

- सर पर ग़लत तो है ना? 
बुद्धिजीवी – देखिये, गाली गुस्से में दी जाए तो ज़रूर ग़लत है पर अगर मैं अपने दोस्त को दे रहा हूँ, प्यार से दे रहा हूँ, दोस्त को भी मेरी इंटेंशन पता है, तो? हमारे यहाँ की तो तहज़ीब में ही गालियाँ शामिल हैं। क्या तहजीब ही ग़लत है? यहाँ तो जो गाली देकर बात न करे तो उसे दोस्त ही नहीं समझा जाता। जितनी ज़्यादा गाली दी जाती है, दोस्ती उतनी ही क़रीबी होती जाती है। हाँ, लड़ाई-गुस्से में आप किसी को गाली दो, वो तो ग़लत है। 

-सर आप शायद ग़लत समझ रहे हैं। हम इसलिए ग़लत नहीं कह रहे हैं कि हमें आपके दोस्त के लिए बुरा लगा है। नहीं, बात आपके दोस्त  की नहीं है, इंसानियत की है। जितनी भी गालियां भारत में हैं, वे या तो  औरतों को लेकर हैं या दलित-दमित जातियों के नाम पर। तो ये गालियां आप मज़ाक में, प्यार में, कैसे भी दें, मनोबल उन्हीं का तोड़ने का काम करती हैं जो सबसे निचले पायदान पर हैं। आप ही सोचिये ना सर, हमने औरत के भाई को भी गाली बना लिया है। उस औरत का घर में आत्मविश्वास क्या रहा होगा? उस औरत के योनांग को गाली बना लिया है। आप को एक उदारहण से समझाता हूँ। पड़ोसी का एक पांच साल का बच्चा आपके बच्चे के साथ खेल रहा है। आपने अपने बच्चे को जातिसूचक गाली देते हुए कुछ कहा। अब पड़ोसी की वही जाति है जिसको गाली बना कर आप अपने बच्चे को दे रहे हो। इससे आपके बच्चे पर कुछ असर नहीं पड़ेगा जबकि पडोसी के बच्चे का मनोबल टूट जाएगा। हालांकि, आपने तो अपनी समझ में उसे कुछ नहीं कहा। आसपास अपने बारे में इतनी निगेटिव बातें सुनकर जीना आसान नहीं होता है, सर। 
बुद्धिजीवी - देखिये आप जो बातें कर रहे हैं, वह अतिवाद है। इतना सोचकर कोई गाली नहीं देता। जैसे आप कह रहे हैं, वैसे कुछ नहीं होता है। बहुत दलित भी गाली देते हैं। औरतें भी गाली देती हैं।हम गाली दे देते है लेकिन इसका कोई सीरियस मतलब नहीं होता है। 

सर सभी गालियां औरतों और दलितों पर ही क्यों हैं? आप प्यार में सबको साला क्यों बोलते हैं, जीजा क्यों नहीं बोलतेदेवर क्यों नहीं बोलते? 
 बुद्धिजीवी - देखिये अब आप कुतर्क कर रहे हैं। और मुझसे ये सब बहस क्यों कर रहे हैं? मैं फेमिनिस्ट नहीं हूँ। 

सर फेमिनिस्ट की बात कहाँ से आई? 
बुद्धिजीवी - मैं दलित चिंतक भी नहीं हूँ। 

- बिलकुल नहीं हैं। पर, सर, आप हैं क्या
 बुद्धिजीवी  - मैं संसार का आठवाँ अजूबा हूँ। 

सर आप इतने हर्ट क्यों हो रहे हैं? सोचिए, एक अच्छे इंसान के नाते आप गाली नहीं देते हैं तो...
 बुद्धिजीवी - तो मेरी साँसे रुकने लगती हैं। दिल धड़कने से मना कर देता है। 
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3 comments:

HARSHVARDHAN said...

आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन भारत कोकिला सरोजिनी नायडू और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।

सुशील कुमार जोशी said...

"देशभक्ति के नाम पर `संस्कारी टोले` सड़कों पर `दुश्मन` की माँ-बहन की गालियां निकालते हुए घूम रहे थे।"

जय हो:)

लाजवाब।

Anonymous said...

Thanks for sharing with us

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