रघुवीर सहाय की एक कविता
औरत की ज़िंदगी
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कई कोठरियाँ थीं कतार में
उनमें किसी में एक औरत ले जाई गई
थोड़ी देर बाद उसका रोना सुनाई दिया
उसी रोने से हमें जाननी थी एक पूरी कथा
उसके बचपन से जवानी तक की कथा
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रघुवीर सहाय (९ दिसंबर १९२९-३० दिसंबर १९९०)
चित्र-
अंजलि इला मेनन की पेंटिंग
3 comments:
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हूं.. पहले भी कई बार पढ़ चुकी हूं, डर लगता है..
मार्मिक कविता!
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