जब हम पृथ्वी की आधी आबादी के ऊपर अनचाही विकलांगता मढ़ने के दोहरे दुष्प्रभावों को देखते हैं - एक तरफ उनसे जीवन का सबसे सहज, स्वाभाविक और ऊंचे दर्जे का आनंद छीन जाता है; और दूसरी तरफ जीवन उनके लिए उकताहट, निराशा और एक गहरी असंतुष्टि का पर्याय बन जाता है - तो इसमें कोई संदेह नहीं रह जाता कि पृथ्वी पर एक बेहतर जिंदगी के मानवीय संघर्ष में स्त्रियों की व्यक्तिगत स्वतंत्रता एक प्रमुख और बहुत महत्वपूर्ण लक्ष्य होना चाहिए। इस सम्बन्ध में पुरुषों के खोखले भय सिर्फ़ स्त्रियों को ही नहीं, बल्कि पूरी मानवता को ही बन्धनग्रस्त किए हुए हैं - क्योंकि मानवीय प्रसन्नता के आधे झरनों के सूखने से पूरे वातावरण के स्वास्थ्य, सम्पन्नता और सौन्दर्य पर प्रभाव पड़ता है। - जॉन स्टुअर्ट मिल की किताब `द सब्जेक्शन ऑफ़ विमेन` के हिन्दी अनुवाद `स्त्री और पराधीनता से`
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