Thursday, March 13, 2008

हमीं हम हमीं हम

हमीं हम हमीं हम
रहेंगे जहाँ में
हमीं हम हमीं हम
ज़मीं आसमां में
हमीं हम हमीं हम
नफीरी ये बाजे
नगाडे ये तासे
कि बजता है डंका
धमाधम धमाधम
हमीं हम हमीं हम
हमीं हम हमीं हम

ये खुखरी ये छुरियां
ये त्रिशूल तेगे
ये फरसे में बल्लम
ये लकदम चमाचम
ये नफरत का परचम
हमीं हम हमीं हम
हमीं हम हमीं हम

ये अपनी ज़मीं है
ये खाली कर लो
वो अपनी ज़मीं है
उसे नाप डालो
ये अपनी ही गलियां
ये अपनी ही नदियाँ
कि खूनों के धारे
यहाँ पर बहा दो
यहाँ वहां तक
ये लाशें बिछा दो
सरों को उड़ाते
धडों को गिराते
ये गाओ तराना
हमीं हम हमीं हम
हमीं हम हमीं हम

न सोचो ये बालक है
बूढा है क्या है
न सोचो ये भाई है
बेटी है माँ है
पड़ोसी जो सुख दुःख का
साथी रहा है
न सोचो कि इसकी है
किसकी खता है
न सोचो न सोचो
न सोचो ये क्या है

अरे तू है गुरखा
अरे तू है मराठा
तू बामन का जाया
तो क्या मोह माया
ओ लोरिक की सेना
ओ छत्री की सेना
ये देखो कि बैरी का
साया बचे ना

यही है यही है
जो आगे अडा है
यही है यही है
जो सिर पर चढ़ा है
हाँ ये भी ये भी
जो पीछे खडा है
ये दायें खडा है
ये बाएं खडा है
खडा है खडा है
खडा है खडा है
अरे जल्द थामो
कि जाने न पाए
कि चीखे पै कुछ भी
बताने न पाए
कि पलटो, कि काटो
कि रस्ता बनाओ
अब कैसा रहम
और कैसा करम, हाँ
हमीं हम हमीं हम
हमीं हम हमीं हम
रहेंगे जहां में
हमीं हम ज़मीं पे
हमीं आस्मां पे।
-मनमोहन

7 comments:

manjula said...

पूरी कविता पढ़ते पढ़ते कई चेहरे जेहन में उतर आये. कभी मोदी, कभी ठाकरे, कभी अंजाने किन्‍तु जानी पहचानी घृणा ओढ़े कई आम चहरे. आफिस में रोज के मुलाकाती, रिश्‍तेदारों में भी ऐसे भाव कई बार मिले. कविता पढ़ कर लगा जैसे रोज मिलती हूं ऐसे विचारों से. पता नहीं इतनी घृणा कहां से समा जाती है एक छोटे से दिल में

rashmi said...

मनमोहन जी की कविताये वाकई लाज़वाब है......हमी-हम की हसरत यदि यू ही पनपती रही तोवह दिन दूर नही जब मैं-मैं और सिर्फ़ मैं के वजूद की लराइया होंगी.

अनुराग अन्वेषी said...
This comment has been removed by the author.
अनुराग अन्वेषी said...

हमीं हम में खो गये हम
सच का सामना कर
फिर निकला दम

पर साथी,
जो करते हैं बेदम
करके हमीं हम
उन्हें न कोई शर्म
न कोई गम
दिखा लो उन्हें चाहे जितने भी आईने
गाते रहेंगे वे
हमीं हम हमीं हम

बेसुरा होगा सुर हमारा
असुर गाते रहेंगे गीत
समझ मेरे मन(मोहन), मान मेरे मीत।

Anonymous said...

manmohan uncle ne iske alaawa shayd aur kuch nahi likha ;) Ain't I right?

Pratyaksha said...

बहुत बढ़िया ! हमीं हम का बाजा !

प्रतिश्रुति said...

ओह मनमोहन जी क्या कह डाला आपने तीन शब्दों की एक एक लाइन में। गजब। शब्द ही नहीं है तारीफ के। बस इसे महसूस किया।