हमीं हम हमीं हम
रहेंगे जहाँ में
हमीं हम हमीं हम
ज़मीं आसमां में
हमीं हम हमीं हम
नफीरी ये बाजे
नगाडे ये तासे
कि बजता है डंका
धमाधम धमाधम
हमीं हम हमीं हम
हमीं हम हमीं हम
ये खुखरी ये छुरियां
ये त्रिशूल तेगे
ये फरसे में बल्लम
ये लकदम चमाचम
ये नफरत का परचम
हमीं हम हमीं हम
हमीं हम हमीं हम
ये अपनी ज़मीं है
ये खाली कर लो
वो अपनी ज़मीं है
उसे नाप डालो
ये अपनी ही गलियां
ये अपनी ही नदियाँ
कि खूनों के धारे
यहाँ पर बहा दो
यहाँ वहां तक
ये लाशें बिछा दो
सरों को उड़ाते
धडों को गिराते
ये गाओ तराना
हमीं हम हमीं हम
हमीं हम हमीं हम
न सोचो ये बालक है
बूढा है क्या है
न सोचो ये भाई है
बेटी है माँ है
पड़ोसी जो सुख दुःख का
साथी रहा है
न सोचो कि इसकी है
किसकी खता है
न सोचो न सोचो
न सोचो ये क्या है
अरे तू है गुरखा
अरे तू है मराठा
तू बामन का जाया
तो क्या मोह माया
ओ लोरिक की सेना
ओ छत्री की सेना
ये देखो कि बैरी का
साया बचे ना
यही है यही है
जो आगे अडा है
यही है यही है
जो सिर पर चढ़ा है
हाँ ये भी ये भी
जो पीछे खडा है
ये दायें खडा है
ये बाएं खडा है
खडा है खडा है
खडा है खडा है
अरे जल्द थामो
कि जाने न पाए
कि चीखे पै कुछ भी
बताने न पाए
कि पलटो, कि काटो
कि रस्ता बनाओ
अब कैसा रहम
और कैसा करम, हाँ
हमीं हम हमीं हम
हमीं हम हमीं हम
रहेंगे जहां में
हमीं हम ज़मीं पे
हमीं आस्मां पे।
-मनमोहन
7 comments:
पूरी कविता पढ़ते पढ़ते कई चेहरे जेहन में उतर आये. कभी मोदी, कभी ठाकरे, कभी अंजाने किन्तु जानी पहचानी घृणा ओढ़े कई आम चहरे. आफिस में रोज के मुलाकाती, रिश्तेदारों में भी ऐसे भाव कई बार मिले. कविता पढ़ कर लगा जैसे रोज मिलती हूं ऐसे विचारों से. पता नहीं इतनी घृणा कहां से समा जाती है एक छोटे से दिल में
मनमोहन जी की कविताये वाकई लाज़वाब है......हमी-हम की हसरत यदि यू ही पनपती रही तोवह दिन दूर नही जब मैं-मैं और सिर्फ़ मैं के वजूद की लराइया होंगी.
हमीं हम में खो गये हम
सच का सामना कर
फिर निकला दम
पर साथी,
जो करते हैं बेदम
करके हमीं हम
उन्हें न कोई शर्म
न कोई गम
दिखा लो उन्हें चाहे जितने भी आईने
गाते रहेंगे वे
हमीं हम हमीं हम
बेसुरा होगा सुर हमारा
असुर गाते रहेंगे गीत
समझ मेरे मन(मोहन), मान मेरे मीत।
manmohan uncle ne iske alaawa shayd aur kuch nahi likha ;) Ain't I right?
बहुत बढ़िया ! हमीं हम का बाजा !
ओह मनमोहन जी क्या कह डाला आपने तीन शब्दों की एक एक लाइन में। गजब। शब्द ही नहीं है तारीफ के। बस इसे महसूस किया।
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