एक अफसोसनाक और शर्मनाक हादसा जो सदियों से बदस्तूर जारी है, उसे कैसे प्रहसन में तब्दील कर दिया जाता है, उसका ताजा उदहारण विभूति प्रकरण है. अफ़सोस यह है कि इसमें वो लोग भी शामिल हैं जो बड़े साहसी है और सांस्कृतिक-साहित्यिक जगत के नेता और बेहद सुलझे हुए व्यक्ति माने जाते हैं. बेशक इनकी अपने दिल में ख़ास कद्र है. कद्र तो विभूति के भी कई कामों की है. मगर होता यही आया है कि हर `चेम्पियन` पुरूष औरतों से बदतमीजी करना अपना विशेषाधिकार मानता है. गिल के पी एस इसी समाज में हैं और बड़ी शान से हैं.
बहरहाल, जो इस मसले को जाने-अनजाने अमूर्त बना देना चाहते हैं और जो हर असहमति को हमले की तरह मान रहे है, निश्चय ही उन्होंने अपना नुकसान विभूति से ज्यादा कर लिया है. माफियों और लीपापोती का दौर चल रहा है. बाद में सेमिनारों और दारू के दौर बदस्तूर जारी रहेंगे.
फिर भी गौरतलब है कि प्रत्यक्ष-परोक्ष समर्थकों को इस बात का अहसास है कि उनकी छवि पर भी आंच आ रही है और अब वो ज्यादा संभलकर आगे आ रहे हैं. लड़ाई जहाँ तक पहुँची है, उसके नेतृत्व के लिए कृष्णा सोबती की साहसिक पहल का शुक्रगुजार तो होना ही चाहिए.
बहरहाल, मनमोहन की एक छोटी सी कविता साझा करने को जी चाहता है -
ग़लती ने राहत की साँस ली
उन्होंने झटपट कहा
हम अपनी ग़लती मानते हैं
ग़लती मनवाने वाले खुश हुए
कि आख़िर उन्होंने ग़लती मनवाकर ही छोड़ी
उधर ग़लती ने राहत की साँस ली
कि अभी उसे पहचाना नहीं गया
11 comments:
aap kabhie blog jagat mae bhi isii prakaar kae ravyae ko upar laaye
yahaan bhi ek haen jo nirantar chhinaal kaa sahii matlab samjhaa rahey haen aur yahaa tak keh rahey haen ki shadi byaah mae madhur galiyaan dee jaatee haen
matlab aap abhi tak nahi maan rahe ki Vibhuti galat hain! waah dheeresh! u r showing a good charecter!
galatee ne nahi vibhuti ne raahat ki saans li hai..
aravind
मनमोहन की यह कविता सारे ‘भूल-गलती’ प्रकरण के परिणाम को व्याख्यायित कर रही है। लेकिन गलती मानकर जो सजा से बच गए, उनका क्या ? धीरेश भाई, क्या तुमने इस प्रकरण में विभूति का कभी समर्थन भी किया है ... यह अनोनिमस बंधु क्या कह रहे हैं भाई !
nicx
agar yh lagta hai ki main manta hoon ki vibhooti galat nahi hain, to yh mere liye sharmnak hai. sorry benami Arvind Ji.
Parmendra Bhaii, main unhin par kah raha hoon ki kaise Do Vibhooti alag bataye ja rahe hain, ki vo to lekhak hain aur unhone lekhak ke nate yh kah diya, ab ve kulpati bane rahen. main yhi kah raha hoon ki aise tark sharmnak hain. galtee ne rahat kee sans lee ka matlab hi yhi hai ki kaisi sharmnak leepapoti kee ja rahee hai. kya apne kahin dekha ki maine Vibhooti ya aise kisi vyakti ka samarthan kiya hai, Parmendra bhai?
yh post hi un sathiyon ke liye lagayi thi jo golmol baton kee aad men Vibhooti ke krity ko kam bata rahe hain.
Bhaaii, main to kah hi raha hoon ki ise amoort na banakar seedhe baat kee jaye.
इस मसले पर मनमोहन की कविता जितना कह गई....उतना गला फाड़ फाड़ कर चिल्लाने वाले लोग भी नहीं कह सके. इस कविता की याद दिलाने और इसे यहाँ लगाने के लिए शुक्रिया धीरेश भाई.
यह एक जरूरी कविता लगाई आपने, धीरेश भाई। उनके लिए भी जो विभूति नारायण की नीच हरकत के खिलाफ खुल कर बोले और उनके लिए भी जिनका विभूति आदरणीय और जी है।
हिंदी की आधुनिक रंगभूमि पर जारी शर्मनाक प्रहसन पर एक सटीक कविता।
ये एनानिमस महोदय कन्फ़्यूजन क्रियेट करना चाहते हैं…धीरेश का स्टैण्ड पहले दिन से क्लियर है…
साथियों का कहना सही है- सीधी बात यह कि राय साहब वर्धा विश्वविद्यालय के कुलपति पद से बर्ख़ास्त हों और कालिया जी से ज्ञानोदय छीना जाय। इससे कमतर कुछ भी धोखा होगा…
वी. एन. राय जी महिलाओं के प्रति ऐसी भाषा का प्रयोग करके आपने खुद को
एक पिछड़ी मानसिकता का साबित किया है
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