गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने `सद्भावना उपवास` के बाद आईपीएस अधिकारी संजीव भट्ट को गिरफ्तार कराकर अपनी सद्भावना की असलियत पेश कर दी है. उनके शाही उपवास को उनके हृदय परिवर्तन की मिसाल बताने और उन्हें प्रधानमंत्री पद के लिये योग्य बताने वाले मीडिया और पोलिटिकल विश्लेषक ऐसी कारगुजारियों पर ध्यान नहीं देते हैं. मोदी के सरंक्षण में मुसलमानों के नरसंहार को कथित विकास या फिर 1984 के सिख नरसंहार की आड़ में उचित ठहराने की कोशिशें लगातार की जाती हैं. खुद मोदी अपने खूनी जबड़े छुपाने की कोशिश कभी नहीं करते, उलटे इसे वे देश भर में हिन्दू कट्टरपंथियों और आरएसएस को ख़ुश रखने के लिये प्रमाण पत्र के रूप में पेश करते हैं. गुजरात में या तो कोई उनके खिलाफ बोलता ही नहीं है और अगर कोई बोलता है तो उसे बुरी तरह सबक सिखा दिया जाता है. लेकिन गौरतलब यह है कि ऐसे भयावह माहौल में भी प्रतिरोध जिंदा रहता है. कुछ लोग सच के लिये, न्याय के लिये, मनुष्यता के लिये सब कुछ दांव पर लगाते रहते हैं. संजीव भट्ट ऐसे ही विरले लोगों में से हैं. जो उनके साथ हो रहा है, निश्चय ही उन्होंने इसकी और इससे भी बुरी स्थितयों की कल्पना कर रखी होगी.
हैरानी की बात यह है कि भट्ट की गिरफ्तारी के विरोध में सेक्युलर, इंसाफपसंद और लोकतान्त्रिक ताकतों की तरफ से जिस तरह की प्रतिक्रिया होनी चाहिए थी, वैसी हुई नहीं है. कम संख्या में ही सही, पर लोकतंत्र में यकीन रखने वाले लोगों को देश भर के शहरों, कस्बों में जमा होकर कम से कम ज्ञापन आदि तो देने ही चाहिए. बाबरी मस्जिद के खिलाफ शुरू किये गए उन्माद के दिनों में जिस तरह साम्प्रदायिकता से लड़ने की कोशिशें हुई थीं, वे बाद के दिनों में कम ही होती गयीं. आखिर पोपुलर पॉलिटिक्स से प्रतिरोध की दिखावी मुद्रा भी जाती रही. `वैकल्पिक` मीडिया के साथी भी इन दिनों ऐसे सवालों से उदासीन नज़र आने लगे हैं. दोहराने की जरूरत नहीं है कि संजीव भट्ट का साहस और कर्तव्यनिष्ठा ऐसे दौर में और भी ज्यादा उल्लेखनीय है. उन्हें और उनके संघर्ष के साथियों को सलाम.
3 comments:
सदभावना की पोल यूँ न खुलती तो भी मोदी की , उनके विकास की और उनके विजन की असलियत जानने वाले उनसे धोखा नहीं खा सकते थे.
भट्ट के हक़ में आवाज उठाने का शुक्रिया
ye bhatt bhi doodh ka dhula nahi hai.
مشكوور والله يعطيك العافيه
goood thenkss
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