जानकर हैरत होगी, ऐसे आम्बेडकर के एक और सहयोगी थे श्रीधरपंत तिलक जो रूढ़िवादी बाल गंगाधरपंत तिलक के बेटे थे. आम्बेडकर की सामाजिक गतिविधियों में श्रीधरपंत ने बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया. 2 अक्टूबर 1927 को पूना में डिप्रेस्ड क्लास छात्रों की कांफ्रेंस की अध्यक्षता आम्बेडकर ने की और पी.एन.राजभोज और सोलंकी के अलावा तीसरे वक्ता श्रीधरपंत तिलक थे. कांफ्रेंस के बाद पूना के नारायण पेठ में गायकवाड़ वाड़ा में स्थित अपने निवास पर श्रीधरपंत तिलक ने आम्बेडकर के सम्मान में चाय पार्टी आयोजित की.
Babasaheb Amedkar (seated, front row, third from right) with members of the Samaaj Samata Sangh in Bombay in 1927. (Inset) Shridhar Balwant Tilak, son of Lokmanya Bal Gangadhar Tilak. (HT PHOTO) यह फोटो और कैप्शन HT से साभार |
इसी परम्परा को आगे बढ़ाते हुए श्रीधरपंत ने सहभोजन के लिए `अछूत` लड़कों के गायन समूह के लिए अपने घर के दरवाज़े खोल दिए. ऐसा उन्होंने समाज समता संघ की पहल का समर्थन करने के लिए किया जो गायकवाड़ वाड़ा में ही स्थित था. उन्हें आमंत्रित कर उन्होंने समूचे समुदाय ख़ासकर केसरी-मराठा ट्रस्ट के ब्राह्मण ट्रस्टियों के विरोध की परवाह न की. उनके घर लोकमान्य निवास में एक बोर्ड लगा था जिस पर लिखा था ´चातुर्वर्ण्य विध्वंसक समिति´. इसकी वजह से भी उन्हें अपने रिश्तेदारों और ब्राह्मण समाज का रोष सहना पड़ा. श्रीधरपंत पर अत्यंत दबाव डाला गया और केसरी, जो उनके पिता द्वारा ही शुरू किया गया अख़बार था, में भी उनका निरंतर अपमान किया गया.
कट्टरपंथी ब्राह्मण समुदाय और केसरी-मराठा ट्रस्ट के रूढ़िवादी गुट, जिसने श्रीधरपंत को सात साल तक एक मुक़दमे में फँसाए रखा, के बढ़ते दबाव के कारण 25 मई 1928 को बॉम्बे-पूना एक्सप्रेस ट्रेन के सामने कूदकर उन्होंने अपनी ज़िन्दगी ख़त्म कर ली. इस घटना के लिए आम्बेडकर ने केसरी के रूढ़िवादी सवर्ण हिन्दू गुट को दोषी ठहराया जिन्हें श्रीधरपंत गैंग ऑफ़ रास्कल्स कहा करते. आत्महत्या से पहले उन्होंने आम्बेडकर को सम्बोधित एक आखिरी पत्र लिखा था जिसकी प्रति 29 जून 1928 को समता में प्रकाशित हुई थी और नीचे दी जा रही है:
यह पत्र आपके हाथों में पड़े इससे पहले ही मेरे दुनिया छोड़कर जाने की ख़बर आपके कानों में पड़ चुकी होगी. समाज समता संघ के काम को आगे बढ़ाने के लिए पढ़ेलिखे और समाज सुधारवादी युवाओं को आन्दोलन की तरफ आकर्षित करना होगा. इस सिलसिले में आपके अथक प्रयासों को देखकर मैं बेहद प्रसन्न हूँ और मुझे भरोसा है कि ईश्वर आपको यश प्रदान करेंगे. महाराष्ट्रीय युवा अगर इस उद्देश्य का बीड़ा उठा ले तो छुआछूत की समस्या महज पाँच सालों में सुलझ जाएगी. उत्पीड़ित वर्गों के मेरे भाइयों के दुख-दर्दों को अपने इष्ट कृष्णदेव तक पहुँचाने मैं आगे जा रहा हूँ. मित्रों तक मेरा शुभकामनाएँ पहुँचाइएगा.
भवदीय
श्रीधर बलवंत तिलक
25/5/28
श्रीधरपंत की मृत्यु के बारे में सुनकर आम्बेडकर ने 26 मई 1928 को जलगाँव कांफ्रेंस में उनके योगदान को याद करते हुए एक प्रस्ताव पारित किया. अपने सम्पादकीय में उन्होंने श्रीधरपंत की मृत्यु पर शोक प्रगट किया: ¨मैं श्रीधरपंत से बहुत बड़े कार्य की उम्मीद कर रहा था लेकिन अब वे नहीं हैं.¨ समाज समता संघ के साथ श्रीधरपंत का जुड़ाव बढ़ने के बाद से आम्बेडकर उनके करीब आ गए थे. बहुत जल्द ही श्रीधरपंत आम्बेडकर के नज़दीकी मित्र समूह में शामिल हो गए थे. जब भी वे मुम्बई जाते, आम्बेडकर से ज़रूर मिलते और अगर आम्बेडकर पुणे में होते तो तो उन्हें गायकवाड़ वाड़ा में स्थित अपने निवास पर लाने की कोशिश करते. श्रीधरपंत और उनके भाई रामभाऊ तिलक का केसरी-मराठा ट्रस्ट के साथ संघर्ष बेहद बढ़ गया. दोनों भाई अपने उदारवादी नज़रिये और सामाजिक सुधारवादी दृष्टिकोण के लिए जाने जाते थे. तिलक बंधुओं और केसरी-मराठा ट्रस्ट के बीच के क़ानूनी झगडे में रामभाऊ ने वकील के तौर पर आम्बेडकर की सहायता लेने पर ज़ोर दिया था. मगर दीगर कारणों की वजह से आम्बेडकर यह ज़िम्मेदारी स्वीकार नहीं कर पाए.
1धनंजय कीर, डॉ. आम्बेडकर: लाइफ एंड मिशन, पृष्ठ 93-94
2शत्रुघ्न जाधव, श्रीधरपंत तिलक और बाबासाहेब आम्बेडकर (नई दिल्ली: सम्यक
प्रकाशन, 2012), पृ. 36.
3समता, 29 जून 1928, जाधव द्वारा लिखित श्रीधरपंत तिलक और बाबासाहेब आम्बेडकर में पृ 108 पर उद्धृत
(सूरज येंगड़े की पुस्तक ´कास्ट मैटर्स´ के चैप्टर ´ब्राह्मिन्स अगेंस्ट ब्राह्मिनिज़्म´ सब-चैप्टर ´ब्राह्मिनएक्शन´ से उद्धृत)