पिछले दिनों ठाकरे परिवार की करतूतों ने सभी संवेदनशील लोगों को झकझोर दिया। इस बारे में उत्तर भारत के प्रतिनिधि बनने वालों के बयान भी अजीब ही थे। इसी बीच अखबार में ठाकरे का एक कार्टून छपा जिसमें मुम्बई पर अकेले बैठा यह शख्स बोलते दिखाया गया कि यहाँ में अकेला रहूँगा। इसी बीच मुझे एनएसडी के दोस्त से मनमोहन की ये कविता मिली जो काफी पहले सांप्रदायिक ताकतों को ही लक्ष्य करके लिखी गई थी. मैं इसे ब्लॉग पर देना चाह रहा था पर इस बीच ब्लॉग की दुनिया में आए प्रगतिशीलों को ही बचकाने ढंग से लड़ते पाकर और दुःख हुआ। लगा वहां भी, वैचारिक विमर्श और संकट में मिलजुलकर बड़ी लड़ाई के लिए तैयार होने के बजाय एक-दूसरे को नीचा दिखाने का भाव गहरा हो रहा है। एक तरफ़ पूंजीवादी, साम्राज्यवादी और सांप्रदायिक ताकतों ने मिलकर आम आदमी से लेकर न्याय के पक्षधर लोगों को भयंकर ढंग से अकेला कर दिया है और उस पर जिन्हें कुछ करना था, वे आपस में हमीं हम पर उतर आए हैं। बहरहाल यह कविता सांप्रदायिक ताकतों को लक्ष्य करके ही दे रहा हूँ पर आत्मालोचना और आत्मसंघर्ष हम सबके लिए लाजिमी है.....
3 comments:
हमीं हम हमीं हम। "मैं" से भी ज्यादा खतरनाक होता "हम" ये जान लिया ...ने। मनमोहन जी की कविताये एकदम सामयिक है, एक अन्य स्तरीय पोस्ट के लिये साधुवाद।
बिल्कुल सटिक टिप्पणी कि है आपने, तथाकथित प्रगतिशीलों के रवैये पर। भाई एक मशहूर हिन्दी ब्लाग पर क्या नया तमाशा चल रहा है ये कबीरा की समझ के बाहर है। ये गाजा की बहस कुछ ब्लागर्स के व्यक्तिगत अहं की लडाई बनकर रह गयी है, बहस में गाजा छोड बाकी सबकुछ चल रहा है। खेर छोडीये उन्हें..,
आप कामरेड जार्ज हबाश के संघर्ष के बारे कुछ लिखने वाले थे, आपकी पोस्ट के इंतजार में।
कबीरा
धीरेश जी, हम तो आपके ही द्धारे खडे है, देखिये जरा।
भाई ये बेनाम खाकी चड्डीधारी हर कही परेशान करते रहते है, हाकी, कबड्डी के बाद लुकाछिपी खेल रहे है आजकल। कुछ दिन पहरेदारी भी करना पडी पार्टी आफिस की यहा, सडक पर निकलकर जिंदाबाद मुर्दाबाद भी करना पड रहा है।
भाई पुरे सप्ताह मोहल्ले में निठ्ठल्लेगिरी की, बेनामी बेईमानो को निपटाते रहे। इधर कामकाज के मामले में हम खुद ही निपट गये, अब सप्ताहंत पर सारे कामकाज निपटा रहे है, फिर से कुछ व्यवस्तता ज्यादा बढ गयी है। रोटी का ख्याल आते ही कबीरा सन्यासी से फिर गृहस्त बना है पर थोडे से दिनो के लिये।
डायलअप वाले है अपन, वैसे बी एस एन वाले भी अपने वाले ही है पर नियम कायदे तो सबके के लिये समान होते है, कुछ बिल की भी परवाह करती पड रही है।
अद्भुत कविता।मनमोहन जी का फोन नम्बर मुझे देना। मेरा नम्बर तुम्हे वैभव सिंह से मिल जाएगा।
Post a Comment