हुसैन दुनिया के बड़े चित्रकार हैं, पर वह हिंदुस्तान में पैदा हुए हैं, यहाँ की मिट्टी में पले-बढे हैं, और यही मिट्टी उनके चित्रों में ढंग-ढंग से खिल उठती है। भारतीय त्यौहार, मिथ और तमाम सांस्कृतिक अनूठेपन उनके यहाँ और भी ज्यादा जीवंत, और भी ज्यादा मानीखेज, और भी ज्यादा उत्सवधर्मी हो उठते हैं। जाहिर है, होली हिन्दुस्तान का एक निराला त्यौहार है-रंगों का त्यौहार. तो यह भी स्वाभाविक है कि रंगों के इस उस्ताद के यहाँ होली का उत्सव भी मिलेगा। उसकी एक बानगी होली के मौके पर आपके लिए- (इस अफ़सोस के साथ कि इस त्यौहार के मौके पर वो निर्वासन की ज़िंदगी जीने को मजबूर हैं, उन की वजह से जिन्होंने देश में खून की होलियाँ खेली हैं और जिन्होंने देश की तबाही के मंज़र के सिवा कभी कुछ नही रचा है )।
नज़ीर अकबराबादी भी हुए हैं एक शायर, इसी मिटटी के..होली की मस्ती का रंग उनके यहाँ भी निराला है..उसका भी लुत्फ़ लीजिये (अब क्या कीजे, वो मरहूम हैं, वर्ना `संस्कृति` के कोतवाल उन्हें भी देशनिकाला दिला देते ) ...
जब फागुन रंग झमकते हों
तब देख बहारें होली की
परियों के रंग दमकते हों
खूँ शीशे जाम छलकते हों
महबूब नशे में छकते हों
तब देख बहारें होली की
नाच रंगीली परियों का
कुछ भीगी तानें होली की
कुछ तबले खड़कें रंग भरे
कुछ घुँघरू ताल छनकते हों
तब देख बहारें होली की
मुँह लाल गुलाबी आँखें हों
और हाथों में पिचकारी हो
उस रंग भरी पिचकारी को
अंगिया पर तककर मारी हो
सीनों से रंग ढलकते हों
तब देख बहारें होली की
जब फागुन रंग झमकते हों
तब देख बहारें होली की
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आप नजीर की होली यहाँ सुन भी सकते हैं-http://www.dhaiakhar.blogspot.com/
9 comments:
अच्छे रंग गीत के संग!
lajawab, jinhe is desh ki sanskriti ke bare pata nahin unhe kya kaha jaye!
दिल, दिमाग खुश हो गए ये तस्वीर और ये कविता देख पढ़कर....और दिल, दिमाग हिल गए, नफरत के सौदागरों की करतूतों के ज़िक्र से
दिल, दिमाग खुश हो गए ये तस्वीर और ये कविता देख पढ़कर....और दिल, दिमाग हिल गए, नफरत के सौदागरों की करतूतों के ज़िक्र से
भाई छोड़िये इस पाक दिवस पर कमबख्त फिरकापरस्तों को। गंगा-जमुनी संस्कृति ही हमारा मजहब है, आज तो कुदरत भी हुसैन-नजीर व हमारे मजहब के रंग में रंग गयी है।
एक जिद्दी धुन व सभी साथीयो को नवरोज, मिलादउन्नबी, गुडफ्राइडे और होली की बहुत-बहुत मुबारकबाद।
दो दिन बाद गाँव से लौटा हूँ..२३ मार्च को सोच रहा था की गाँव में नेट होता टू ब्लॉग पर भगत सिंह की कुछ रचनाएँ देता. लौटा और मोहल्ला देखकर अच्छा लगा..धन्यवाद
गाँव के रास्ते में एक जगह राजपूत बहुल छोटे से गाँव में कुछ लोग काफी हंगामा कर रहे थे, उन पर किसी दलित बच्चे ने रंग डाल दिया था. सोचता हूँ अछूत समस्या पर भगत संघ का जो लेख है, वो दूँ, यों आप सबका पढ़ा हुआ होगा...फिर भी और भी कई टुकड़े दूँगा कुछ दिन लगातार
jaroor. Intejar hai lekh ka
होली पर हुसैन और नजीर की अच्छी जुगलबंदी जमाई है, लेकिन रंग में भंग करने वालों को ऐसे रंग कहाँ भाते हैं।
Holi par Agra me Nazer ki mazar par holi is mela lagta tha kaya Agra wale es ko phir shuru karenge ?
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