हरियाणा काडर का सीनियर पुलिस अफसर आर के शर्मा आखिरकार पत्रकार शिवानी की हत्या के केस में दोषी करार दिया गया। अखबारों के मुताबिक उसके चेहरे पर राहत थी और वह ख़बरों में संयम बरतने की नसीहत भी दे रहा था। ज़ाहिर है, उसे मिली उम्रकैद राहत की तरह ही है। मानकर चला जाता है कि अगली कोर्ट में इसके कम हो जाने की गुंजाइश रहती है। गौरतलब है अदालत की यह टिपण्णी कि शर्मा का आपराधिक इतिहास नहीं रहा है और उसका सर्विस रेकॉर्ड भी अच्छा रहा है। ज़ाहिर है कि पुलिस के ऐसे अफसरों का आपराधिक रेकॉर्ड हो भी कैसे सकता है। सर्विस रेकॉर्ड भी अजब चीज है। पुलिसअफसर का रेकॉर्ड तो और भी ज़्यादा। कई अफसरों का रेकॉर्ड तो `अपराधियों' को कथित एन्कोउन्टर में मारकर चमकता रहता है। जो लोग सच को झुठलाना नहीं चाहते, वे जानते हैं कि लगभग ९९ फीसदी एन्कोउन्टर फर्जी होते हैं और कई बार एक पुलिस अफसर अपने इलाके के किसी आपराधिक रेकॉर्ड के आदमी को दूसरे प्रदेश के अपने दोस्त अफसर को सौंप देता है ताकि वह उसे मारकर अपना रेकॉर्ड चमका सके, आउट ऑफ़ टर्न परमोशन पा सके। हद तो तब होती है, जब एन्कोउन्टर स्पेशलिस्टकहे जाने वाले पुलिस अफसर बाकायदा अपराधियों के टूल की तरह काम करने लगते हैं। ऐसे पुलिस अफसर एक माफिया से मोटा पैसा लेकर उसके दुश्मन का कत्ल कर देते हैं। इस तरह की आपराधिक करतूतों को यह कहकर सही ठहराने की कोशिश की जाती है कि आख़िर बदमाश तो मारा ही गया । ऐसा कहने वाले लोग यह समझने की कोशिश नहीं करते कि एक पुलिस अफसर का माफिया का शूटर बन जाना कैसी बात है। जहाँ तक आम आदमी के आपराधिक रेकॉर्ड की बात है तो वह मामूली मुकदमों से ही लगातार ख़राब होता रह सकता है। अक्सर पुलिस किसी एक केस में फंस गए आदमी पर ही तमाम केस थोपती रहती है।
बहरहाल, मैं आर के शर्मा के बेहतर रेकॉर्ड के बारे में सोच ही रहा था कि एनकाउंटर स्पेशलिस्ट कहे जाने वाले दिल्ली के पुलिस अफसर राजबीर के कत्ल की ख़बर आयी। जिस तरह गुडगाँव के एक प्रोपर्टी डीलर के यहाँ राजबीर का कत्ल हुआ, उसी से काफी बातें साफ हो जाती हैं। नेचुरल जस्टिस जैसी बात कहने वाले भी हैं। लेकिन हम आर के शर्मा की बात कर रहे थे जिसका सर्विस रेकॉर्ड बहुत अच्छा रहा है और जिसने शिवानी के साथ प्रेम सम्बन्ध बनाये और माँ बनने पर वह शादी के लिए दबाव देने लगी तो उसका कत्ल करा दिया। ज़ाहिर है ऐसे कत्ल बेहद ठंडे दिमाग से कराये जाते हैं और इतने बड़े अफसर के फंसने के चांस यानि रेकॉर्ड ख़राब होने के चांस भी कम ही होते हैं।
इन दिनों होकी को `सुधारने' में जुटे गिल साहब का रेकॉर्ड तो पंजाब में आतंकवाद खत्म करने का है। ऐसे में उन्हें किसी भी महिला कि बेइज्जती करने का हक़ मिल जाता है क्या? जिस महिला से उन्होंने छेड़खानी की थी, वह अफसर ही थी लेकिन उस पर कितना दबाव रहा, केस न लड़ने का, यह सभी को मालूम है। गिल को लम्बी कानूनी लड़ाई के बाद दोषी तो माना गया, लेकिन महज जुर्माना किया गया। पैसे वाले लोग तो यों भी औरतों को पैसे से खरीदना चाहते हैं...औरत की डिग्निटी की कीमत रुपयों का जुर्माना ? लेकिन मामला मर्द अफसरों के रेकॉर्ड का है...मर्दों का रेकॉर्ड ही काफी होता है, फिर मर्द अफसर....
3 comments:
bahut khub, keep it up
purush ho ker mard afsaro pe tippani..........ye baat kuchh logo ko hajam nahi hogi......bachiyega.
सही कह रहे हैं...
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