हिंदी साहित्य में इधर कई अप्रिय प्रसंग हुए हैं. उदयप्रकाश जैसे प्रतिभाशाली वरिष्ठ लेखक का एक फासीवादी से पुरस्कार लेने पहुंचना और फिर इस मुद्दे पर विरोध करने वालों को हड़काना बहुत से लोगों के लिए बेहद हैरत की बात थी. हालाँकि यह फिसलन अचानक नहीं थी. दुनिया के एकध्रुवीय होने के ऐलान और हिन्दुस्तान में साम्प्रदायिक उभार ने कई लेखकों को नए माहौल में अपना नफा-नुकसान देखते हुए नया रास्ता अख्तियार करने के लिए मजबूर किया. फिर भी हिंदी लेखकों का बड़ा हिस्सा कुल-मिलाकर प्रतिबद्ध रहा. युवा लेखकों ने भी प्रतिरोध की परम्परा से रिश्ता बनाया. इस दृष्टि से कृष्णमोहन प्रकरण ज्यादा दुखद है. यह प्रतिभाशाली युवा आलोचक जिस तरह सलवा-जुडूम संचालकों के जादू में एक विवादास्पद पुरस्कार लेने पहुंचा और फिर इस `यश` की झोंक में अपने संगठन जन संस्कृति मंच तक को खरी-खोटी सुनाने लगा, हैरत और अफ़सोस की बात रही. जसम ने कृष्णमोहन को संगठन से निष्कासित करने की औपचारिकता पूरी कर दी है. निष्कासन का चिट्ठा यूँ है-
जन संस्कृति मंच श्री कृष्णमोहन को तत्काल प्रभाव से संगठन से निष्कासित करता है. ग्यातव्य है कि ११-१२ जुलाई को सम्पन्न हुई जन संस्कृति मंच की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में सर्वसम्मति से एक प्रस्ताव लिया गया था. प्रस्ताव में 'प्रमोद वर्मा स्मृति सम्मान' की मार्फ़त 'सलवा जुडुम' जैसे जघन्य कार्य कराने वाली तथा डा. विनायकसेन जैसे मानवतावादी चिकित्सक को 'छत्तीसगढ़ पब्लिक सिक्योरिटी ऎक्ट' जैसे काले कानून में फ़ंसाने, फ़र्ज़ी मूठभेड़ों तथा दूसरे मानवाधिकार के मसलों पर दुनिया भर में निंदित सरकार द्वारा वाम, जनवादी और प्रगतिशील संस्कृतिकर्मियों को साज़िशाना तरीके से एक खास समय में अपने पक्ष में इस्तेमाल करने की निंदा की गई थी. इस प्रस्ताव में यह भी कहा गया था कि स्व. प्रमोद वर्मा की स्मृति को जीवित रखने के लिए किसी भी आयोजन या पुरस्कार से कोई ऎतराज़ नहीं है. लेकिन यह कार्यक्रम तो उनकी स्मृति का भी शासकीय अपहरण था. श्री कृष्णमोहन. जो अब तक जसम की राष्ट्रीय परिषद में थे, इस कार्यक्रम में शामिल थे. उनसे उक्त प्रस्ताव की रोशनी में लिखित तौर पर स्पष्टीकरण मांगा गया था जिसका जवाब भेजने की जगह उन्होंने एक ब्लाग पर उद्दंड भाषा में संगठन पर अनर्गल बातें कहीं. कार्यकारिणी के सभी सदस्यों से विचार विमर्श के उपरांत, अधिकांश की राय के अनुसार, प्रस्ताव की भावना के अनुरूप श्री कृष्णमोहन को जन संस्कृति मंच से निष्कासित किया जाता है.
(जन संस्कृति मंच की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की ओर से के. के. पाण्डेय द्वारा जारी)
12 comments:
ग्यातव्य - ज्ञातव्य
पूरी कहानी से संबंधित कड़ियाँ भी प्रदान करते तो अच्छा रहता।
होनहार बिरवा के होत चीकने पात
krusna mohan ne JASAM ki aalochana ki ??
yakin nhi hota !!
kya aap us blog ka link de sakte h....
krisnamohan ka is mamle me jawab kya h ?
यह ठीक नहीं हुआ है. इस तरह जसम ने साबित कर दिया है कि वे साहित्य संस्कृति और विचारों को स्तालिन की तर्ज़ पर नियंत्रित करना चाहते हैं. मुझे बोरिस पास्तरनाक और उनके उपन्यास डॉ. जिवागो की याद आ गयी. ऐसा लेफ्ट की हिस्ट्री में बार बार हुआ है. इसीलिये बुध्धिजीवियों की लेफ्ट सत्ताओं से कभी नहीं पटी. ज्दानोव रूस में बाकायदा कविता कंट्रोलर के राजकीय पद पर थे. उन्होंने अन्ना अख्मातोवा जैसी प्रतिभाशाली कवियत्री का जीवन नष्ट कर दिया. तमाम उदाहरण हैं. कल को ये लोग सत्ता में आ गए तो साहित्य का क्या हाल करेंगे, सोच कर ही दर लगता हैं.
नरेश निझावन
Girne walo par afsos na karen, apne kadam majboot rakhen. age aur bhayankar tufan ke asar hain
कृष्ण मोहन को जसम से निष्कासित कर ही दिया गया. इसी की उम्मीद थी जसम से. जसम के अनपढ़ नेताओं का ख़याल है कि उन्हीं के इशारों पर यह दुनिया चलती है. इन्होने साबित कर दिया कि इतिहास से इन्होने कोई सबक नहीं लिया है. ये स्तालिन के वंशज हैं और किसी भी तरह की असहमति बर्दाश्त नहीं कर सकते. इनका बस चलता तो ये कृष्ण मोहन को साइबेरिया भिजवा देते. या किसी लेबर कैंप में भिजवा देते.
आलोक गुप्ता
कृष्ण मोहन को जसम से निकाल देना शर्मनाक है. इसे इतिहास माफ़ नहीं करेगा. यह जसम पर एक धब्बा है. इसके बाद जसम का मेंबर बनने से पहले कोई हज़ार बार सोचेगा. बहुत सारे लोग जो पहले मेंबर हैं, इस्तीफा देने के बारे में सोच रहे होंगे. जसम का मेंबर बनने का मतलब है कि अपना मस्तिष्क इनके नेताओं के पास गिरवी रख दो.
ये लोग स्वतंत्र विचारों का बिलकुल सम्मान नहीं करते. ये दूसरों को प्रोसीकुट करने में सदा अव्वल रहते हैं लेकिन अपने बारे में कभी कोई शंका नहीं करते. ये अपने निजी जीवन में क्या क्या करते हैं, यह सबको पता है.
जसम का मेंबर बनने की शर्त या पात्रता है कि आप आर टी ओ हों. दिन भर घूस लें और रात को मंहगी शराब के साथ प्रगतिशीलता के कुल्ले करें.
महावीर जैन
Mahaveer Jain jee, what is this R T O membership of JASAM ? I could not understand, please clarify.
हे स्तालिन के अत्या़चार से पीड़ित महान बुद्धिजीवियों, प्रमोद वर्मा वाले आयोजन पर जसम के प्रस्ताव की पोस्ट भी लगी हुई है जिसमें कृष्णमोहन का नाम भी नहीं लिया गया है और दखल की दुनिया पर कृष्णमोहन द्वारा जारी एक पोस्ट भी देख लो. दोनों की भाषा और विचार मिला लो. समझ में आ जाएगा कि कौन लोकतांत्रिक है और कौन तानाशाह. अच्छी परिभाषा है लोकतंत्र की कि एक आदमी खुल कर, सार्वजनिक तौर पर भद्दी भाषा में अनाप शनाप बके अपने ही संगठन को जबकि संगठन ने उससे स्पष्टीकरण भी निजी तौर पर मांगा हो और आप कहें कि पूरा संगठन उनके बेहूदा आरोपों पर वाह लोकतंत्र ! वाह लोकतंत्र कह कर निहाल क्यों नही हो जाता.
महावीर स्वामी, तुम जो भी हो, चरित्र हनन की यशस्वी परम्परा में कब दीक्षित हुए? तुम तो इस विधा में कृष्णमोहन के भी कान काट रहे हो जी.महावीर जैन! तुम भी यश्स्वी भव!
बोधिसत्व की एक कविता
त्रिलोचन
‘सुनने में आया, हैं बीमार त्रिलोचन
हरिद्वार में पड़े हैं, अपने बेटे के पास
जिनका कविता-फ़विता से कोई
लेना-देना नहीं है। टूट गई है जीभ, जो मन सो
बकते से हैं, जसम-फ़सम, जलेस-प्रलेस सब
सकते में हैं’
खबर सुनाई जिसने कवि-अध्यापक वह
इलाहाबाद-अवध में चर्चा है व्यापक कह
मौन हुआ, मैं रहा देखता उसका मुंह
रात बहुत थी काली, जम्हाता अंगुली
पटकाता वह फिर बोला –
‘सूतो अब तुम भी’
मैंने मन ही मन कहा –
‘त्रिलोचन घनी छांव वाला तरुवर है
मूतो अब तुम भी’
उस पर विचार के नाम पर
दुर-दुर करो, कहो वाम पर
धब्बा है त्रिलोचन
कहो त्रिलोचन कलंक है।
भूल जाओ कि वह जनपद का कवि है
गूंज रहा है उसके स्वर से दिग-दिगंत है।
मरने दो उसको दूर देश में पतझड़ में
तुम सब चहको भड़ुओं तुम्हारा तो
हर दिन बसंत है।
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yah haganee-mutanee chhichhariyaane kaa mahaan bhaduaa samaya hai . is mahaanataa mein aapakaa bhee yogadaan hai .
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