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फोटो 5 अक्तूबर 2013 के उसी कार्यक्रम का है जिसे सुधीश पचौरी बर्दाश्त नहीं कर सका था। |
हमारे प्यारे कवि वीरेन डंगवाल की बीमारी को लेकर 6 अक्तूबर 2013 को `दैनिक हिंदुस्तान` में सुधीश
पचौरी की घिनौनी टिप्पणी प्रकाशित हुई थी तो पचौरी और अख़बार के संपादक की
चारों तरफ निंदा हुई थी। मेल बॉक्स की सफाई करते हुए यह मेल भी सामने आया
जो उस बीमार मानसिकता के विरोध में HT Media ltd की Chairperson शोभना भरतिया को भेजा गया था।
श्रीमती शोभना भरतिया
अध्यक्षा
एच. टी. मीडिया लि.
हिंदुस्तान टाइम्स भवन
नई दिल्ली
प्रिय महोदया,
हम
आपका ध्यान आपके संस्थान द्वारा प्रकाशित हिंदी के लोकप्रिय दैनिक
हिंदुस्तान में 6 अक्टूबर को प्रकाशित एक व्यंग्य की ओर दिलाना चाहते हैं।
यह व्यंग्य एक ऐसे व्यक्ति पर है जो कि कैंसर से पीड़ित है। हद यह है कि
व्यंग्य उस व्यक्ति के बीमार होने पर है। इसके लेखक हैं सुधीश पचौरी। इस
बीच पत्र-पत्रिकाओं और सोशल मीडिया में इस की भर्त्सना करते हुए टिप्पणी भी
प्रकाशित हुई है। (कृ. देखें संलग्न टिप्पणी)
हिंदी
के जिस जानेमाने कवि का मजाक उड़ाया गया है, उस अकादेमी पुरस्कार से
सम्मानित कवि का नाम है, वीरेंद्र डंगवाल। इस के बावजूद कि कवि के संदर्भ
को शब्दों के चातुर्य से ढका हुआ है पर सारा हिंदी जगत जानता है कि किस की
मजाक उड़ाई गई है। इस लेख के पीछे छिपी अमानुषिकता और निर्ममता का कोई सानी
नहीं है। दुनिया के किसी भी समाचारपत्र में साहित्य या व्यंग्य के नाम पर
शायद ही कहीं ऐसा देखने को मिलता हो। सच यह है कि कोई भी सभ्य समाज इस तरह
की बेहूदगी और बर्बरता नहीं दिखला सकता जैसी कि आपके अखबार के माध्यम से
सामने आई है। हम आपसे अपेक्षा करते हैं कि आप इस को एक बार देखें और विचार
करें कि क्या इस तरह की हरकत किसी अखबार को शोभा देती है?
हमें
आशा थी कि अखबार के संपादक मामले की गंभीरता को देखते हुए इस बीच इस पर
जरूर कार्रवाई करेंगे। पर अफसोस की बात यह है कि दो माह से ज्यादा गुजर
जाने के बावजूद संपादक ने कुछ नहीं किया बल्कि वह यह उम्मीद किए बैठा लगता
है कि लोग इस आमानुषिकता को भूल जाएंगे। इससे जाहिर होता है कि इस व्यंग्य
के छापने में आपके संपादक का पूरा-पूरा हाथ है।
आप
इस मामले में क्या कार्रवाई करती हैं और क्या नहीं, यह आपका सरोकार है पर
हिंदी से जुड़ा होने और हिंदी समाज का हिस्सा होने के नाते हमें आपका ध्यान
इस ओर दिलाना जरूरी लगा है। हम इस तरह के कृत्य से अपनी असहमति और विरोध
अभिव्यक्त करते हैं।
सधन्यवाद
भवदीय
1. आनंद स्वरूप वर्मा
2. असद जै़दी
3. रामशरण जोशी
4. पंकज बिष्ट
5. अजय सिंह
6. प्रकाश चौधरी
7. अशोक पाण्डे
8. शिरीष मौर्य
9. धीरेश सैनी
To
Smt. Shobhana Bhartia
The Chairperson
H T Media Ltd.
New Delhi
Dear Madam
We
the following Hindi Writers would like to draw your attention to an
item published by your well known Hindi daily Hindustan on 6th Oct.
2013. This so called humer or satir is on a man suffering from the
dreded desease of Cancer. This 'pice of humer' is written by a man
called Sudheesh Pachauri.
For
your information a number of Hindi magaziesns and social media sites
have taken note of it and commented on this dasderdly act. (Pl see the
encolsed clipping).
This
sort of inhumanity and heartlessness in the name of freedom of the
press is unthinkable and unheard of. It is neither literature nor
journalism. The fact is that no civilised society can allow this sort of
indecency and barbarianism. The name of the poet who has been reduculed
in this piece is Virendre Dangwal, a recipent of Sahitya Academi award.
We request you to just have a look at it and decide of your own whether
this is justified by any yardstick? Through this letter we would also
like to express our displeasure as well as our opposition to this sort
of writing.
with best wishes
1. A. S. Verma
2. Asad Zaidi
3. R. S. Joshi
4. Pankaj Bisht
5. Ajay Singh
6. Dheeresh Saini
7. Prakash Chaudhri
8. Shirish Morya
9. Ashok Panday
शारीरिक बनाम मानसिक रुग्णता
पहले यह टिप्पणी देख लीजिए:
''एक गोष्ठी में एक थोड़े जी आए और एक अकादमी बना दिए गए कवि के बारे में बोले वह उन थोड़े से कवियों में हैं, जो इन दिनों अस्वस्थ चल रहे हैं। वह गोष्ठी कविता की अपेक्षा कवि के स्वास्थ्य पर गोष्ठित हो गई। फिर स्वास्थ्य से फिसलकर कवि की मिजाज पुरसी की ओर आ गई। थोड़े जी बोले कि उनका अस्वस्थ होना एक अफवाह है, क्योंकि उनके चेहरे पर हंसी व शरारत अब भी वैसी ही है। (क्या गजब 'फेस रीडिंग` है? जरा शरारतें भी गिना देते हुजूर)। हमने जब थोड़े जी के बारे में उस थोड़ी सी शाम में मिलने वाले थोड़ों से सुना, तो लगा कि यार ये सवाल तो थोड़े जी से किसी ने पूछा ही नहीं कि भई थोड़े जी आप कविता करते हैं या बीमारी करते हैं? बीमारी करते हैं तो क्या वे बुजुर्ग चमचे आप के डाक्टर हैं जो दवा दे रहे हैं। लेकिन 'चमचई` में ऐसे सवाल पूछना मना है।`` यह टुकड़ा 'ट्विटरा गायन, ट्विटरा वादन!` शीर्षक व्यंग्य का हिस्सा है जो दिल्ली से प्रकाशित होनेवाले हिंदी दैनिक हिंदुस्तान में 6 अक्टूबर को छपा था। इस व्यंग्य की विशेषता यह है कि यह एक ऐसे व्यक्ति को निशाना बनाता है जो एक दुर्दांत बीमारी से लड़ रहा है। हिंदी के अधिकांश लोग जानते हैं कि वह कौन व्यक्ति है। दुनिया में शायद ही कोई लेखक हो जो बीमार पर व्यंग्य करने की इस तरह की निर्ममता, रुग्ण मानसिकता और कमीनापन दिखाने की हिम्मत कर सकता हो।
पर यह कुकर्म सुधीश पचौरी ने किया है जिसे अखबार 'हिंदी साहित्यकार` बतलाता है। हिंदीवाले जानते हैं यह व्यक्ति खुरचनिया व्यंग्यकार है जिसकी कॉलमिस्टी संबंधों और चाटुकारिता के बल पर चलती है।
इस व्यंग्य में उस गोष्ठी का संदर्भ है जो साहित्य अकादेमी पुरस्कार से सम्मानित सबसे महत्त्वपूर्ण समकालीन जन कवि वीरेन डंगवाल को लेकर दिल्ली में अगस्त में हुई थी। वह निजी व्यवहार के कारण भी उतने ही लोकप्रिय हैं जितने कि कवि के रूप में। वीरेन उन साहसी लोगों में से हैं जिन्होंने अपनी बीमारी के बारे में छिपाया नहीं है। वह कैंसर से पीडि़त हैं और दिल्ली में उनका इलाज चल रहा है। पिछले ही माह उनका आपरेशन भी हुआ है।
हम व्यंग्य के नाम पर इस तरह की अमानवीयता की भर्त्सना करते हैं और हिंदी समाज से भी अपील करते हैं कि इस व्यक्ति की, जो आजीवन अध्यापक रहा है, निंदा करने से न चूके। यह सोचकर भी हमारी आत्मा कांपती है कि यह अपने छात्रों को क्या पढ़ाता होगा। हम उस अखबार यानी हिंदुस्तान और उसके संपादक की भी निंदा करते हैं जिसने यह व्यंग्य बिना सोचे-समझे छपने दिया। हम मांग करते हैं कि अखबार इस घटियापन के लिए तत्काल माफी मांगे और इस स्तंभ को बंद करे।
- समयांतर, नवंबर 2013 में छपी टिप्पणी
(पत्र पर हस्ताक्षर करने वाले लेखकों के फोन नंबर भी दिए गए थे जो यहां पोस्ट में हटा दिए गए हैं।)