Saturday, March 8, 2008

आदमखोर - शुभा


एक स्त्री बात करने की कोशिश कर रही है
तुम उसका चेहरा अलग कर देते हो धड़ से
तुम उसकी छातियां अलग कर देते हो
तुम उसकी जांघें अलग कर देते हो

तुम एकांत में करते हो आहार
आदमखोर! तुम इसे हिंसा नहीं मानते


आदमखोर उठा लेता है
छह साल की बच्ची
लहूलुहान कर देता है उसे

अपना लिंग पोंछता है
और घर पहुँच जाता है
मुंह हाथ धोता है और
खाना खाता है

रहता है बिल्कुल शरीफ आदमी की तरह
शरीफ आदमियों को भी लगता है
बिल्कुल शरीफ आदमी की तरह।
-शुभा

7 comments:

दिवाकर प्रताप सिंह said...
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Ek ziddi dhun said...
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दिवाकर प्रताप सिंह said...
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manjula said...

bhayankar kintu sach hai aur aise aadamkhoro ko pahchanna kitna mushkil hai. Aksar apno ke bhesh me bhi mil jate hai.

परेश टोकेकर 'कबीरा' said...

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर एक जिद्दी धुन पर सभी महिला साथिया का क्रांतिकारी अभिनंदन। एक बढिया पोस्ट के लिये बहुत बहुत बधाई।
भाई धीरेश जी कृपया करके मोहल्ला में गाजा पर चल रही बहस में आईये। लाख समझाने पर कुछ जिद्दी बेनाम लोग इसरायल जिंदाबाद, अमेंरिका जिंदाबाद की धुन छोड ही नहीं रहे है। आईये।

Unknown said...

मैं ब्लॉग की दुनिया से वाकिफ नही हूँ बट इस ब्लॉग पर आकर सन्न रह गई. पहली बार महसूस कर रही हूँ कि हमारी बात कही गई है. मंजुला जैसा कह रही हैं आदमखोर अपनों में भी बल्कि अपनों में ही मिलते हैं. ये सरे मर्द शरीफ हैं और घर में इनसे बेटी और बहन भी कैसे बचती हैं, लड़कियन ही जानती हैं. बड़ी तादाद में रैप की घटनाएँ घरों में हुई हैं. ऐसी बातें अधिकतर दबा दी जाती हैं. ये किसी साहब की बात पढ़कर और भी गुस्सा आया की औरत्खोर कहा जाए. यही लोग हैं जो गुरुजन की कृपा से शरीफ बने हें हैं. थू इनकी सेंसिविटी पर. इनके लिए है--सवर्ण, प्रोढ़ वाली कविता

संदीप said...

मंजुला और अदिति ने बेहतर प्रतिक्रिया व्यक्त की है, शुभा की कविताएं आगे भी पोस्ट करते रहिए, अच्छा लिखती हैं