जी को लगती है तेरी बात खरी है शायद /
वही शमशेर मुज़फ़्फ़रनगरी है शायद
Saturday, December 5, 2009
छह दिसंबर
मलबा -----
समतल नहीं होगा कयामत तक पूरे मुल्क की छाती पर फैला मलबा ऊबड़-खाबड़ ही रह जाएगा यह प्रसंग इबादतगाह की आख़िरी अज़ान विक्षिप्त अनंत तक पुकारती हुई । -सुदीप बनर्जी
वह बात और प्रसंग तो लोग भुला देना चाहते हैं और बस उसे याद दिलाया जाता है तो सिर्फ़ अपने फायदे के लिए, वरना उस उबड़ खाबड़ मलबे को उठाकर कौन फैंकना चाहता है ? वहीं पड़ा रहने देना चाहते हैं.
समतल नहीं होगा कयामत तक सेक्यूलरों की छाती पर फैला मलबा मलबे के सौदागर नचायेंगे ये प्रसंग मूर्खों की हर साल की अजान विक्षिप्त लोगों की छातियां पीटेने की हास्यापद कोशिशें
7 comments:
वह बात और प्रसंग तो लोग भुला देना चाहते हैं और बस उसे याद दिलाया जाता है तो सिर्फ़ अपने फायदे के लिए, वरना उस उबड़ खाबड़ मलबे को उठाकर कौन फैंकना चाहता है ? वहीं पड़ा रहने देना चाहते हैं.
समतल नहीं होगा कयामत तक
सेक्यूलरों की छाती पर फैला मलबा
मलबे के सौदागर नचायेंगे ये प्रसंग
मूर्खों की हर साल की अजान
विक्षिप्त लोगों की छातियां पीटेने की हास्यापद कोशिशें
इतिहास में दर्ज होती हैं तारीखें
तारीखों में दर्ज होता है इतिहास
इसलिये कि इतिहास ही तारीख़ है
छह दिसम्बर इतिहास की तारीख है -
शरद कोकास
http://kavikokas.blogspot.com
यहां समतल जमीन पर
कब्रों की पैमाइश
करते सौदागरों की फ़ौज
अपनी खून आलूदा जुबानें
लपलपाते हुए
नयी बस्तियों
मासूम जानों को
दफ्न करने की फ़िराक में हैं
अद्भुत!!
यह हमारी साझी विरासत का मलबा है भाई
इसके नीचे 1857 की अजीजन की चीख है,भगत सिंह की चीत्कार और नेहरु की उफ़्…यह हमारी सामूहिकताओं की सामूहिक कब्र है!
समतल नहीं होगा कयामत तक
पूरे मुल्क की छाती पर फैला मलबा!
फिरकापरस्त ताकते चाहे जितना जोर लगा ले हमारी साझा विरासत को खरोंच तक नहीं पहुचा सकती है।
लिब्रहान आयोग भले ही छ दिसंबर के विलेनों को छोड दे पर देश की जनता इन्हें कयामत तक माफ नहीं करेंगी।
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