हिंदुस्तान टाइम्स समूह के दैनिक अखबार हिंदुस्तान में इन दिनों पत्रकारों से एक एग्रीमेंट पर ज़ोर-ज़बरदस्ती से हस्ताक्षर कराया जा रहा है जिसमें कहा गया है कि उनका मुख्य कार्य पत्रकारिता नहीं है बल्कि वे शौकिया अखबार को कुछ समाचार या रिपोर्ट देते हैं जिनके बदले उन्हें एक फ़िक्स्ड अमाउंट का भुगतान किया जाता है. इस एग्रीमेंट के ज़रिए बिहार, यू.पी. और दूसरे राज्यों के दर्जनों संस्करणों में वर्षों से काम कर रहे सैकड़ों स्ट्रिंगरों को बंधुआ मज़दूर बनाने का काम हो रहा है.
डेढ़ दशक पहले जब हिंदुस्तान में छोटे-छोटे शहरों से संस्करणों के प्रकाशन की श्रृंखला शुरू हुई तो उन्हें बड़ी संख्या में पत्रकारों की ज़रूरत पड़ी. तब हिंदुस्तान के प्रबंधकों ने सस्ते में पत्रकारों की भर्ती के लिए एक नया तरीका ईजाद किया. हिंदुस्तान के कार्यालयों में स्ट्रिंगरों और सुपर स्ट्रिंगरों की दो श्रेणियां बनाकर पत्रकारों की भर्ती की गई
. नियुक्ति के समय इनको कोई नियुक्ति-पत्र आदि नहीं दिया गया और उन्हें भरोसा दिलाया गया कि जल्द ही उन्हें स्थाई कर दिया जाएगा. स्ट्रिंगर और सुपर-स्ट्रिंगर बनने वाले अधिकतर पत्रकार नए थे और कैरियर बनने की जद्दोजहद कर रहे थे. उन्हें समाचारपत्र समूहों में श्रम के शोषण के बारे में ज़्यादा कुछ भान नहीं था. उनमें एक आदर्शवाद था और वे समझते थे कि समाचार-पत्र मालिक अखबार निकालकर देश की सेवा कर रहे है और वे खुद पत्रकारिता के ज़रिए सामाजिक बदलाव लाने में अपनी भूमिका का निर्वाह कर रहे हैं. इतना महत्वपूर्ण कार्य करने के बदले यदि उन्हें एक या दो हजार रुपए मिल जाते हैं तो कोई बात नहीं है. वे नहीं जानते थे कि अखबार मालिक जो देश के बड़े पूंजीपति हैं उनके इसी जज़्बे का फ़ायदा उठाकर लाखों-करोड़ों रुपए की मजदूरी की लूट करते हैं और अपनी तिजोरी भरते हैं.
समय बीतता रहा. हिंदुस्तान अखबार की ग्रोथ दिन-दूनी
-रात -चौगुनी बढ़ती रही. संस्करण पर संस्करण आते रहे. हिंदुस्तान देश का सबसे तेज़ी से बढ़ता अखबार बन गया. दनादन बढ़ता गया हिंदुस्तान. हिंदुस्तान एच.टी. मीडिया लिमिटेड में बदला और अब हिंदी हिंदुस्तान अलग कम्पनी बनकर हिंदुस्तान मीडिया वेंचर्स लिमिटेड बन गया. बीच के दौर में संपादकों के कुछ दुलारे स्ट्रिगर स्टाफ़ रिपोर्टर बन गए लेकिन ९० फ़िसदी जैसे थे, वैसे ही बने रहे. तीन चार वर्षों के अंतराल में उनका मानदेय कभी पांच फ़ीसदी तो कभी दस फ़ीसदी बढ़ा. चूंकि वे दो या तीन हज़ार पाते थे इसलिए यह बढ़ोत्तरी डेढ़ सौ रुपए और अधिकतम पांच सौ रुपए से ज़्यादा नहीं हुई. कहने के लिए वे स्ट्रिंगर थे लेकिन अखबार निकालने का पूरा काम वे ही करते थे. एक संस्करण के अंतर्गत ज़िलों में स्थापित ब्यूरो या कर्यालय में एक स्टाफ़ रिपोर्टर के अलावा सभी स्ट्रिंगर ही थे और उन्हीं के ऊपर अखबार निकालने की ज़िम्मेदारी थी
. इनके काम के घंटे व साप्ताहिक अवकाश तय नहीं थे. समाचार कवरेज के लिए होने वाली दौड़-धूप के लिए कोई खर्च नहीं दिया जाता. मोबाइल और फ़ोन का खर्च खुद उठाना पड़ता है. यहां तक कि अखबार की अपनी प्रति भी पैसा देकर खरीदनी पड़ती. देढ़ दशक में अखबार के संपादक पद पर अनेक स्वनामध्न्य लोग आसीन हुए जिनकी संवेदनशीलता, न्यायप्रियता,गरीब और मज़दूर की पक्षधरता की दूर दूर तक चर्चा थी.स्ट्रिंगरों ने अपनी व्यथा आंतरिक बैठकों में कई बार बयां की. हर बार उन्हें बतौर पत्रकार राष्ट्रीय कर्तव्य की याद दिलाई गई और कर्म करते रहने और फल की इच्छा संपादकों के विवेक पर छोड़ देने का उपदेश दिया गया.
और अब डेढ़ दशक बाद सभी स्ट्रिंगरों के पास एकएग्रीमेंट का कागज़ आया है जिस पर उन्हें हस्ताक्षर करना है. इसमें लिखा है, "
मैं कभी कभार खेल, राजनीति, संस्कृति, शिक्षा, अपराध ,सामाजिक मुद्दों आदि पर न्यूज़, रिपोर्ट्स और स्टोरीज़ हिंदुस्तान के संस्करण में देता हू. मेरा मुख्य काम पत्रकारिता नहीं है. मैं कुछ और काम करता हूं."
यह एग्रीमेंट एक दिसम्बर, २००९ से एक वर्ष की अवधि के लिए होगा. यदि पत्रकार इससे मुक्त होना चाहे तो कम्पनी को एक महीने पूर्व सूचित कर एक महीने के एडवांस के साथ जा सकता है और कम्पनी जब चाहे कोई नोटिस दिए बगैर उसे हटाने का अधिकार रखती है.
इस एग्रीमेंट के साथ एक छोटा सा पत्र भी है जिसमें पत्रकार को लिखना है कि वह स्वेच्छा से एच.टी. मीडिया लिमिटेड से डिस-एसोसिएट कर रहा है
.
डेढ़ दशक तक अपने जीवन के सबसे अच्छे दिन एक पूंजीपति के अखबार के लिए होम कर देने वाले पत्रकारों के सामने गुलामी के इस दस्तावेज़ पर हस्ताक्षर करने के अलावा रास्ता क्या है?
यहां पर एग्रीमेंट पेपर साथ में दिया जा रहा है जिससे किसी को यह कहानी न लगे.
(1)
From :
........................................
........................................
.........................................
To :
Hindustan Media Ventures Limted
Pocket-2, Vibhuti khand,
Gomatinagar
Lucknow
Dear sir
I wish to occasionally contribute news reports/ stories for publication in the publication of hindi Hindustan. I will do this work as hobby and journalism is not my whole time avocation. My principal avocation is ………………………………..
Kindly let me know the termes and conditions of this arrangement between the Hindi Hindustan and me. My particular are as under :
1. Name :…………………………………….
2. Father’s / husband’s name :…………………….
3. date of birth
3. Adress :
5. Contact No :……………………………….
6. Education :
7. Experience : …………………………..
date signature
(2)
Hindustan Media
Ventures Limited
Dear
Apropos to your application dated ………………….that you intend to contribute news, reports and stories for publication in our hindi daily, Hindustan ……………..Edition from ……..and that your principal avocation is …………………and not journalism, we wish to inform you that your application has been accepted on the following terms and conditions.
I. you will be sending news reports/ stories about sports, political, cultural, social matters, education, crime etc. which you consider of public intrest and fit to be published in our paper.
II. you will be paid a fix amount of Rs ........... per month for sending news reports/stories. you will also be reimburshed fax/ E-mail charged based on approval from resident Editor/ Unit Head.
III. you will not be getting any other expenses spent on collecting news reports/ stories nor will you be reimbursed secretarial expenses on this account except to the extent, which may be specifically agreed to by the cmpany. you will also not be supplied any stationary.
IV. you will inform the company at least one month in advanced in case you changed your principal avocation.
this arrangement will come into force with effect from december 1, 2009 for a period of one year and is liable to be terminated any time without notice at the discretion of the Management.
your signature on the duplicate copy of this letter will signify your unequivocal acceptance of the above terms and conditions.
with best wishes,
Amit chopra
Business Head-Hindi publaction
(3)
To,
The HR Manager
HT Media Ltd
Human Resources
New Delhi.
Kindly be informed that i would like to disassociate myself with HT Media Ltd. w.e.f. 29 th nov’ 09. please acknowledge the receipt of this letter as token of acceptance.
Warm regards
....................
......................
13 comments:
हद की भी हद होती हे। पत्रकारों की ये हालत है तो दूसरों की क्या होगी !!
शोषण की सराहना कौन कर सकता है ? शोषण हर हाल में निंदनीय है !
वैसे इनमें से कितने भाई मिशन भावना से पत्रकारिता करने आये थे ? देश में रोजी रोटी के संकट नें भयावह स्थितियां पैदा कर दी हैं !
पूंजीवाद का असली रूप! पत्रकारिता मे भी ऐसा होता है सुना तो था पर आपने तो प्रमाणित ही कर दिया। इस शोषण का करारा जवाब दिया जाना चाहिये।
swatantra patrakaaro^ kaa to aur bhee buraa haal hai
hindustan ne kya naya kar diya. Amar ujala mein ye chalan varsho se hai. amar ujala ke affidavit per to ant mein ye bhi likha hota hai "ishwar meri maddad kare"
hindustan ne kya naya kar diya. Amar ujala mein ye chalan varsho se hai. amar ujala ke affidavit per to ant mein ye bhi likha hota hai "ishwar meri maddad kare"
मेरी गलती से उपरोक्त टिप्पणी एनोनिमास चला गया, जिसका सुधार करते हुए मैं ये जोड़ना चाहता हूँ कि वर्तमान दौर में जितना शोषण रिपोर्टर्स का हो रहा है, उतना शायद कहीं और होता हो दुनिया के शोषण पर लिखने वाले अपनी हालत रो भी नहीं सकते! है न अजब बात। वैसे भी मीडिया आज लाला कि दुकान बन चुका है और अख़बार एक प्रोडक्ट जिसे बेचने के लिए सलेजमैन की भूमिका में हर कस्बे में सस्ते पत्रकार मिल गए हैं। जो इस भूमिका में फिट है वो हिट है। चाहे ब्लैकमेल करे या कुछ और जुगाड़...बस संस्थान का हित साधने वाला ऑलराउंडर चाहिए। पत्रकार, मालिक और अख़बार के अंतरसंबंधों पर शब्दों की बाजीगरी दिखाने वाले संपादक लाला के दलाल की भूमिका में दिखने लगे हैं। अब ऐसे में प्रतिभा या मिशन शब्द एक धोखे से अधिक कुछ नहीं है। संस्थान में आपकी लाबी नहीं है तो जिंदगी भर जपते रहो प्रतिभा का बेसुरा राग..सुनते-सुनते आप बोर हो जायेंगे लेकिन सामने वाला नहीं सुनेगा। टिके रहने के लिए चमचागिरी का नेसर्गिक गुण भी पत्रकारिता की अनिवार्यता है।
भाई सच्चाई को इस तरह पर्दाफाश करने के लिए धन्यवाद। मैं भी बिगत 10 साल से इसी शोषण का शिकार हूं या यूं कहूं एक जुनून को अपने साथ जी रहा हूं। बात महज इतनी नहीं है कि पत्रकारों को मोबाइल, गाड़ी और अपने अखबार को खरीदने का खर्चा नहीं दिया जाता है बात इससे भी आगे यह है कि अब प्रत्येक माह पत्रकारों को विज्ञापन का टारगेट दिया जाता है और उसको पूरा करने के लिए दबाब भी दिया जाता है फिर सवाल जो सबसे बड़ा है वह यह है कि आखीर क्यों लोग पत्रकार बन कर शोषण का शिकार हो रहे हैर्षोर्षो
amar ujala ka 'shatir software' import hindustan ne kiya hai.ab amar ujala jaise virus to pair pasarenge hi!!
भारत में पत्रकारिता के संस्थान पूंजीपति घरानों की बपौती रहे हैं - अब और क्या कहा जाये! चीज़ें शर्मनाक होती जा रही हैं. अब देखिये सब अनाचार छोटे पत्रकारों पर ही हैं, बड़े लोग लाख लाख के पैकेज में जमे हुए हैं...उनके होटों पर मलाई साफ़ देखी जा सकती है. उनके लिए गोयनका एवार्ड्स हैं और बाकियों के लिए ये अपमानपत्र. प्रतिरोध नदारत है. कुछ घुटी घुटी आवाजें हैं. आपने पहल की, जो एक जिम्मेदारी का काम है. शुक्रिया.
khabar laane-banaane walon ki khud ki khabaren aisi hi hoti hai.
एक ज़माने में मास्टरी नहीं मिली तो पत्रकार बनने का फ़ैसला किया था। पर यारों का हश्र देखकर लगता है कि अच्छा ही हुआ!!
yah shosad nahi hai,ab press m chor ,jua karane wale,abedh sharab bechne wale,gunde jud rahe ha taki unhe media cover mil sake.akhwar tatha reporter dono sahjivan ji rahe h.kya hindustan kya amarujala sabhi shosak h
yah shosad nahi hai,ab press m chor ,jua karane wale,abedh sharab bechne wale,gunde jud rahe ha taki unhe media cover mil sake.akhwar tatha reporter dono sahjivan ji rahe h.kya hindustan kya amarujala sabhi shosak h
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