Monday, November 1, 2010
मीडिया के रवैये पर अरुंधति
सुबह ११ बजे (इतवार, ३१ अक्टूबर २०१०) करीब सौ लोगों की भीड़ मेरे घर पर आ धमकी. इन लोगों ने घर का दरवाजा तोड़ डाला और संपत्ति को नुकसान पहुँचाया. वे (हमलावर) कश्मीर पर मेरे विचारों के खिलाफ नारे लगा रहे थे और मुझे सबक सिखाने की धमकी दे रहे थे. एनडीटीवी, टाइम्स नाऊ और न्यूज़ २४ की ओबी वैन्स इस इवेंट को लाइव कवर करने के लिए यहाँ पहले से ही मौजूद थीं. टीवी रिपोर्ट्स के मुताबिक, भीड़ में बीजेपी महिला मोर्चा की कार्यकत्रियां बड़ी संख्या में शामिल थीं. उनके जाने के बाद पुलिस ने हमें सलाह दी कि आइन्दा कभी आसपास कोई ओबी वैन मंडराती दिखाई दे तो हमें (पुलिस को) खबर कर दी जाए क्योंकि यह इस बात का संकेत होता है कि भीड़ (हमलावर) बस आने ही वाली है. इसी साल जून में प्रेस ट्रस्ट ऑफ़ इंडिया (पीटीआई) की एक झूठी रिपोर्ट की वजह से मोटरसाइकिलों पर सवार दो लोगों ने मेरे घर की खिडकियों पर पत्थर फेंके थे. उन दोनों (हमलावरों) के साथ भी टीवी कैमरामेन थे.
मीडिया के इस हिस्से, भीड़ और अपराधियों के बीच आखिर किस तरह का करार है। `सीन` में पहले ही मौजूद रहने वाले मीडिया के पास क्या यह गारंटी रहती है कि हमले और प्रदर्शन अहिंसक रहेंगे? अगर आपराधिक अतिचार (जैसा कि आज हुआ) हो या कुछ और ज्यादा बुरा हो तो क्या हो? क्या तब मीडिया क्राइम का सहभागी होता? यह सवाल अहम है क्योंकि कुछ टीवी चैनल और अख़बार मेरे खिलाफ भीड़ का गुस्सा उकसाने के काम में ढिठाई से लगे हुए हैं. सनसनी फैलाने की होड़ में ख़बरों की रिपोर्टिंग और ख़बरें गढ़ने के बीच अंतर धुंधला चुका है. टीआरपी रेटिंग की वेदी पर कुछ लोगों की कुर्बानी देनी पड़ती हो, तो क्या फ़र्क पड़ता है? सरकार यह संकेत दे चुकी है कि वह मेरे और हाल में कश्मीर की आज़ादी को लेकर हुए सेमिनार के दूसरे वक्ताओं के खिलाफ देशद्रोह की कार्रवाई करने की इच्छुक नहीं है. इसलिए यह लगता है कि मेरे विचारों के लिए मुझे सजा देने का टास्क अब राइट विंग के तूफ़ान मचाने वाले सैनिकों ने समभाल लिया है. बजरंग दल और आरएसएस खुलेआम एलान कर चुके हैं कि वे हर तरीके से जो भी वे अंजाम दे सकते हैं, जिनमें देश भर में मेरे खिलाफ मुकदमे दर्ज कराना भी शामिल है, मुझे ठिकाने लगाएंगे. पूरा देश देख चुका है कि वे क्या कर सकते हैं और किस हद तक जाने में सक्षम हैं. तो, जब सरकार कुछ परिपक्वता दिखा रही है, क्या मीडिया के (ये) हिस्से और लोकतंत्र का ढांचा भीड़तंत्र (भीड़ के `इन्साफ`) में यकीन रखने वालों के हवाले कर दिया गया है. मैं ऐसा समझती हूँ कि मेरे बहाने से बीजेपी महिला मोर्चा का मकसद आरएसएस के वरिष्ठ एक्टिविस्ट इन्द्रेश कुमार की ओर से ध्यान हटाना है, हाल ही में जिसका नाम अजमेर शरीफ बम विस्फोट जिसमें बहुत से लोग मारे गए थे और ज़ख़्मी हुए थे, के सिलसिले में सीबीआई की चार्जशीट में आया है. लेकिन, मुख्यधारा का मीडिया भी ठीक ऐसा ही क्यों कर रहा है? क्या एक अलोकप्रिय विचारों का लेखक बम विस्फोट के संदिग्ध से ज्यादा खतरनाक है? या यह वैचारिक सीध का मसला है?
अरुंधति राय द्वारा जारी वक्तव्य, (द हिन्दू से अनुवाद)
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5 comments:
यह समय उनके साथ खड़े होने का है…
मीडिया का इस तरह का कृत्य बेहद चिन्ताजनक है। इन समाचार चैनलों के पास ‘क्रिएटिड न्यूज’, फूहड़ हास्य और नृत्य प्रतियोगिताओं के घंटों के प्रोग्रामों के लिए ही स्पेस है, समाचारों की गम्भीरता और संवेदनशीलता जैसी कोई चीज इनके पास नहीं बची है।
अरुंधती जी के विचार भी पढ़ने को मिले - नहीं तो हम एक ही पक्ष को जान और सुन रहे है, मेरा मानना है कि मिडिया की अहम भूमिका है, देश के प्रति सुरक्षा और सौहार्दपूर्ण माहोल विकसित करने की , किन्तु मिडिया भी अपने आगे रहने की होड में इन पहलुवो को नकार देता है |
सर माफ़ी चाहूंगी ! आपकी इस पोस्ट को में चर्चामंच में अन्य पोस्ट के साथ शुक्रवार को रखूंगी | धन्यवाद
मुझे कुछ इस तरह परेशा किया जा रहा है
मुझे मेरे रास्ते से गुमराह किया जा रहा है
मुझे हर बात बेखौफ कहने में कैफ मिलता
है
...
मेरे उसी अंदाज़ पर मुझे शर्मिंदा किया जा रहा
है
उनको मालूम है मेरा
अंदाज़-ऐ-बयां सबसे जुदा है
तो मुझे मेरे हर एक अल्फाज़ पे टोका जा रहा
है
मेरे मरासिम ही तो हैं मेरी हस्ती की बुनियाद
मेरे
हबिबो को एक एक कर के खरीद जा रहा है
हवा रोक दी, धुंद भर दी फलक तक, पर काट
दिए
और मुझे आकाश में उड़ने का फरमान दिया जा रहा है
इन्कलाब के ख्याल तो मेरे जेहेन
में रहते हैं
और मुझे मेरे पहनावे पे तलब किया
जा रहा है
वो ख़ुद तो
बुन न सके एक ख्याल भी कभी
और मेरे अफकारो को धुंधला तसव्वुर कहा जा रहा
है
मुझे कुछ इस तरह परेशा किया जा रहा है
मुझे मेरे रास्ते से
गुमराह किया जा रहा है
courtesy-http://poetrybybhavarth.blogspot.com/
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