महान क्रांतिकारी और वामपंथी विचारक अर्नेस्टो चे गुएवारा दुनिया भर में वंचित तबकों के संघर्षों के प्रतीक और प्रेरणास्रोत हैं। अर्जेन्टीना में जन्मे (14 जून 1928) डॉक्टर अर्नेस्टो क्यूबाई क्रांति के लिए हुए सशस्त्र संघर्ष में फिदेल कास्त्रो के चे (साथी) थे और फिर क्यूबा के हर नागरिक के। दुनिया भर में पूंजीवादी-साम्राज्यवादी ताकतों के खिलाफ गरीब जनता के पक्ष में क्रांति का सपना देखने वाले चे ने लातिनी अमेरिकी देशों में जनता के संघर्षों में सीधे भागीदारी की। और इसी संघर्ष में हिस्सा लेते हुए वे आज ही के दिन 9 अक्टूबर 1967 को बोलीविया में शहीद हो गए। उनके शहादत दिवस पर मराठी कवि, चित्रकार, चिंतक गणेश विसपुते की यह कविता `मोटरसाइकिल डायरीज़` भारतभूषण तिवारी ने हिंदी में अनुवाद करके भेजी है। गौरतलब है कि `द मोटरसाइकिल डायरीज़` चे का मशहूर यात्रा वृत्तांत है जो अमेरिकी अत्याचारों और जनता के बुरे हालातों से उनके साक्षात्कार का दस्तावेज भी है। इसी शीर्षक से फिल्म भी बन चुकी है।
मोटरसाइकिल डायरीज़
डेढ़ सौ कुर्सियों वाले हॉल में तीन सौ लड़के
पसीने से तरबतर होते हुए भीड़ लगाए देख रहे हैं झुककर
चे गुएवारा की डायरी में
दो उँगलियों के बीच बेफिक्री से सिगार पकड़े हुए
चे लिख रहे हैं डायरी मग्न होकर
पीछे माउंट माक्चूपिक्चू का ऊंचा नीला पहाड़
उनकी डायरी में झांकते हुए पढ़ र हे हैं लड़के
किसी उत्साही संस्था द्वारा रखे गए फ्री शो के लिए आए हुए
हॉल में भीड़ लगाए
सिगार से उठ रहे हैं धुएँ के छल्ले
चे लिखते हुए बैठे हैं डायरी
ऊपर से झांकते हुए धुएँ के छल्लों में
धूसर नज़र आते हैं उनकी डायरी के हर्फ़
मगर लड़कों ने पढ़ डाला है उन्हें स्पष्ट दिखाई देने वाला शब्द
लड़के भी लिखने लगे हैं डायरियाँ विसंगतियों की
दमे के मरीज चे की साँस फूल रही है और वे
नदी पार कर रहे हैं बड़े प्रयत्नपूर्वक
ऑक्सीजन पाने का प्रयास कर रहे हैं
डूब रहे-उतरा रहे हैं लड़के हाथ पैर मार रहे हैं
उन्हें चाहिए सीधी ज़िंदगी
उम्मीदों के बोझे तले से
उछल कर निकल जाने का प्रयास कर रहे हैं लड़के.
हिमालय के निर्जन की जमा देने वाली रात में
सार्च्यू के पठार पर सांय-सांय हवाएँ बहती हैं
पानी जमने लगता है
तम्बू से बाहर निकल कर ऊपर देखते हुए
जादुई सितारों की जगमगाती दुनिया
इंडिगो ब्लू आसमान में नीचे आ चुका होता है
सार्च्यू का पठार और दक्षिण अमेरिका के रास्तों की
फिल्में एक-दूसरे पर सुपरइम्पोज़ होती हैं
हिमालय के निर्जन में सार्च्यू के पठार पर
मोटरसाइकिलों पर कुछ लड़के आकर रुकते हैं
कड़कड़ाती उँगलियों से चाय के कप पकड़े
बातें करते हैं आगे के सफर की
आगे का रास्ता लेह को जाता है
शायद वही रास्ता और आगे भी जाता होगा
जहाँ पहुँचे थे
चे गुएवारा
गणेश विसपुते |
1 comment:
कुछ चीजों पर कमेंट करना मुश्किल होता है, मगर ये बताया जाना भी जरूरी होता है, कि पढ़ा और चे के इस कविताई सफर के साझीदार बने।
Post a Comment