Tuesday, March 4, 2008

अमरीकीकरण

मैं कभी अमरीका नहीं गया, बुलाया भी नहीं गया
इसकी संभावना कम है कि बुलाया जाऊँ
मेरे बच्चों की भी फिलहाल वहां जाने या बसने की
कोई योजना नहीं है
मेरा कोई नाती-रिश्तेदार, दोस्त भी संयोग से वहां नहीं है
तब भी मैं अमरीकी नज़र से दुनिया को देखता हूँ

मुझे अमरीकी हित, अंतर्राष्ट्रीय हित लगते हैं
कई बार लगता है कि अमरीका के साथ
अन्याय हो रहा है
जिसे और कोई नहीं तो इतिहास जरूर दुरुस्त करेगा
बल्कि जब नोम चोम्स्की अपनी सरकार की नीतियों
का कडा विरोध करते हैं
तो मुझे लगता है कि एक अमरीकी इस तरह अपने देश
के साथ ज्यादती कर रहा है
क्योंकि यह आदमी मेरे देश का होता तो आज तक जिंदा नहीं बचता
मुझे तो कभी-कभी यह भी लगने लगता है कि मेरा रंग गोरा है
मैं जार्ज बुश को राष्ट्रपति कहते हुए यह नहीं सोचता
कि सौभाग्य से वे मेरे राष्ट्रपति नहीं हैं

क्या मैं ऐसा इसलिए हो चुका हूँ कि मैं अमरीकी
अखबारों में छपे लेख और खबरें पढता हूँ
टाइम और न्यूजवीक पढता हूँ , बीबीसी और सीएनएन देखता हूँ
या मुझे उम्मीद है कि मेरे वर्ग के दूसरे बच्चों की तरह
किसी दिन मेरे बच्चे भी अमरीका में बस जाएँगे
और मुझे दस साल का अमरीकी वीसा मिल जाएगा
बिना अमरीकी कपड़ा पहने, बिना अमरीकी खाना खाए
मैं इतना अमरीकी बन चुका हूँ कि
जब कभी दुनिया में कहीं भी अमरीकी हितों को चोट पहुँचती है तो मुझे बुरा लगता है
जिस बात पर अमरीकी सरकार को गुस्सा आता है
मुझे भी आता है
जब अमरीकी दुविधा से गुजरते हैं तो मैं भी गुजरता हूँ

मैं सद्दाम को फांसी देने से इसलिए परेशान नहीं हुआ
क्योंकि अमरीका यही चाहता था
मैं फिदेल कास्त्रो की मौत का
बेसब्री से इंतजार कर रहा हूँ
क्योंकि अमरीका भी यही कर रहा है
ह्यूगो शावेज मुझे इसलिए अच्छे नहीं लगते
क्योंकि अमरीका इन्हें अच्छा नहीं लगता
मैं इसराइल के साथ इसलिए हूँ कि
वह अमरीका के साथ है
मुझे वे सब दयनीय, समय से पिछडे,
गए बीते लगते हैं
जो अमरीका के साथ नहीं हैं
और ग्लोबलाईजेशन का विरोध करते हैं

हालांकि अमरीका मेरे देश के हितों के खिलाफ भी अक्सर जाता है
लेकिन मुझे लगता है कि ऐसा इसलिए है कि मेरे
देश के शासक पूरे मन से अमरीका के साथ नहीं हैं
हालांकि मैं जब अमरीकी नीतियों के साथ नहीं भी होता
तब भी मुझे लगता है कि ये मेरे देश की सरकार की ही ग़लत नीतियां हैं
इसलिए इनका मुझे विरोध करना चाहिए

जब अमरीका अन्तरिक्ष में घातक हथियार स्थापित करता है
या इराक पर हमला करता है या ग्लोबल वार्मिंग पर टस से मस नहीं होता
तो मुझे लगता है कि मेरे अमरीका को ज़्यादा मानवीय होना चाहिए
उसे यह नहीं करना चाहिए
ताकि मैं उसे ज़्यादा प्यार कर सकूं

हालांकि मैं तो उसे वैसे भी और ज़्यादा प्यार करना चाहता हूँ
यहाँ तक कि अमरीका के विरुद्ध प्रदर्शनों में शामिल होने
और अमरीका विरोधी के रूप में शिनाख्त किए जाने पर
भी मैं महसूस करता हूँ
क्योंकि अमरीका है इसलिए विरोध है

जब कभी मुझे लगता है कि अमरीका पूरी दुनिया के लिए खतरा है
तो भी मैं इस खतरे को
एक सच्चे अमरीकी की तरह महसूस करता हूँ
और जब कभी मुझे लगता है कि
अमरीका बर्बर है
तब मैं अपने से पूछता हूँ कि आख़िर
मैं अमरीकी क्यों हूँ
और कुछ देर बाद यह सोचकर मुस्कुरा पड़ता हूँ कि
मेरे पास इसका विकल्प भी क्या है।
-विष्णु नागर

5 comments:

Ek ziddi dhun said...

is silsile main ek kavita manmohan ki bhi deni thi par khasi mehnat ke bavjood do lines mein gap nahi aa rahe the...kal koshish karunga, use post karne ki...

परेश टोकेकर 'कबीरा' said...

'अमेरीकीकरण' के लिये साधुवाद। दो लाईनो में गेप लाने के लिये 'कम्पोज' के स्थान पर 'HTML संपादित करे' पर जाये तथा Enter करने के स्थान पर <br/> tag नयी लाईन के लिये टाईप करे।

Arun Aditya said...
This comment has been removed by the author.
Arun Aditya said...

विष्णु जी की यह कविता एक कार्यक्रम में सुनी थी। तब भी अच्छी लगी थी, आज पढ़ कर फ़िर अच्छी लगी।

manjula said...

क्‍या खूब कहा है नागर जी ने. बहुत बिढ़या