Tuesday, December 29, 2009

आदिवासीजन धरती को बचाने की लड़ाई के वॅनगार्ड हैं- ह्यूगो ब्लांको




साठ के दशक में पेरू की दमनकारी सामंती कृषि व्यवस्था के खिलाफ ह्यूगो ब्लांको ने किसानों के सशस्त्र संघर्ष का नेतृत्व किया. सेना द्वारा गिरफ्तार कर लिए जाने पर उन्हें उम्र-क़ैद की सजा सुनाई गई- उनकी रिहाई के लिए चली अंतर्राष्ट्रीय मुहिम के फलस्वरूप उन्हें मुक्त कर देश-निकाला दे दिया गया. निर्वासन के कुछ साल स्वीडन, मेक्सिको और चिले में बिताने के बाद देश लौटकर उन्होंने वर्कर्स रेवोल्यूशनरी पार्टी की स्थापना की और संसद के लिए चुने गए. 1992 में अल्बर्टो फुजीमोरी द्वारा सत्ता हथिया कर आपातकाल लागू करने पर उन्हें फिर देश छोड़कर मेक्सिको में शरण लेनी पडी. सम्प्रति वे और उनका मासिक पत्र ला लूचा इन्डीजेना (आदिवासी संघर्ष) अमेज़ॉन घाटी के बाशिन्दों के संघर्ष के सबसे बुलंद हिमायती हैं. पेरू के दक्षिणी शहर अराकीपा के विश्वविद्यालय में 28 अगस्त को हुई कृषि सुधारों सम्बन्धी कांफ्रेंस में हिस्सा लेने के एक दिन बाद ही वैकल्पिक मीडिया समूह वर्ल्ड वार 4 रिपोर्ट ने उनसे बात की.

आपने कल रात कहा कि आज अमेज़ॉन घाटी के आदिवासीजन पेरू में संघर्ष के वॅनगार्ड है. क्या आप इस बारे में और कुछ कहना चाहेंगे?

संघर्ष केवल भूमि को मुक्त कराने के लिए नहीं है, बल्कि सिएरा (पहाड़ों) में उत्खनन कंपनियों द्वारा हो रहे ज़मीन के विषाक्तीकरण, सेल्वा में
तेल और गैस प्रकल्पों, नदियों में ज़हर घोले जाने, मछलियों के मारे जाने, पंछियों के मारे जाने और लोगों के मारे जाने के खिलाफ भी संघर्ष है. सिएरा में अब भी बहुत सारे संघर्ष जारी हैं- काहामरका में, पिउरा में. कल ही इस अराकीपा प्रांत के इज़ले जनपद में संघर्ष हुआ जिसमें बहुत से लोग घायल हुए. पर यह सभी संघर्ष बिखरे हुए हैं, छितरे हुए हैं. तिस पर 50 विभिन्न राष्ट्रीयताओं और भाषाओं के बावजूद अमेज़ॉनिको लोग एकजुट हुए हैं. उत्तर के, मध्य के, दक्षिण के अमेज़ॉनिको. एक लोकतांत्रिक और शांतिपूर्ण संघर्ष तैयार करने के लिए वे एकजुट हुए हैं. पिछले साल उन्होंने एक संघर्ष में जीत हासिल कर सरकार से रियायतें पाईं. अब वे दूसरी लड़ाई लड़ रहे हैं, और सरकार ने हथियारों से जवाब दिया है. मगर फिर सरकार को पीछे हटना पड़ा और इन दो कानूनों को उलट दिया गया. उन्होंने एक और फतह हासिल की.
यह एक शांतिपूर्ण संघर्ष था जिस पर सरकार ने छलपूर्वक हमला किया, पर आदिवासियों ने पुलिस से हथियार छीन कर अपनी रक्षा खुद की. इसलिए मुझे लगता है कि यह एक सबक है- न केवल पेरू के लिए बल्कि सारी दुनिया के लिए भी. दुनिया भर में काफी लोग पर्यावरण के बारे में चिंतित हैं - और अच्छे अर्थों में, क्योंकि जैसा कि संयुक्त राष्ट्र संघ ने स्वीकार किया है अगले सौ सालों में मानवता नष्ट हो सकती है.
और यह संघर्ष ख़त्म नहीं हुआ है. अपने अगले कदम को जाँचने-परखने के लिए इस महीने उनके नेताओं की बैठक होने वाली है. पिछले कुछ महीनों से जारी नाकेबंदियों पर शायद वे न लौटें. पर कंपनियों को वे अपने इलाकों में घुसने तो नहीं देंगे. इसलिए मैं कहता हूँ कि अमेज़ॉनिको पेरूवासियों और सारी दुनिया को सिखा रहे हैं कि प्रकृति और इंसानी नस्लों के अस्तित्व की रक्षा कैसे की जाती है.

पर आपकी अपनी विरासत तो काम्पेसिनो (खेतिहर) संघर्ष के नेता के तौर पर है....

हाँ, हमें संघर्ष करना पड़ा था. स्पेन के लोग यहाँ मसालों की तलाश में आये पर उन्हें मसाले नहीं मिले, बल्कि उन्हें मिले सोना-चांदी. पर कृषि-सम्बन्धी समस्या में उन्होंने योरप की सामंती व्यवस्था लागू कर दी- जिसमें सामंतों के पास बेहतर ज़मीनें होती थीं और दास उनकी सेवा करते थे जिसकी एवज में उन्हें खुद के लिए ज़रा सी ज़मीन जोतने दी जाती थी. यह व्यवस्था आज़ादी के लिए हुई क्रान्ति के बाद भी बरकरार रही, इन्दिओस के लिए कुछ भी नहीं बदला. ज़पाटा के विद्रोह के साथ ही मेक्सिको में यह स्थिति बदली. 1952 में बोलीविया में वहां के विद्रोह के बाद यह व्यवस्था दूर हुई . मगर यहाँ पेरू में यही व्यवस्था बनी रही. 1962 में हमने संघर्ष शुरू किया- जो ज़मीनें जोत रहे हैं उनके लिए ज़मीन हासिल करने के लिए. और जब सरकार ने हम पर हिंसक तरीके से हमला किया तो हमें मजबूरी में हथियार उठाने पड़े. पर अंततः सरकार को कृषि सुधार कानून पारित करना पड़ा जिसमें यह स्वीकार किया गया कि ज़मीन पर काम्पेसिनो का हक़ है.
मैं आठ सालों तक जेल में रहा. वे मुझे मौत की सजा देना चाहते थे पर शुक्र है अंतर्राष्ट्रीय एकजुटता का कि मैं जीत गया, वे मुझे मार नहीं सके. अंतर्राष्ट्रीय एकजुटता का शुक्रिया कि आठ सालों बाद मैं आजाद हुआ. इसलिए मुझे लगता है कि अमेज़ॉन के संघर्ष में बंदी बनाए गए लोगों के लिए संघर्ष करना मेरी ज़िम्मेदारी है, ज़िम्मेदारी है उनके लिए लड़ने की जो मेरे लिए लड़े.

अब तक अमेज़ॉन घाटी के लोग अलग-थलग से रहे हैं और पेरू के वर्ग संघर्ष में शामिल नहीं रहे हैं. क्या आपको लगता है कि अब वैश्वीकरण की प्रक्रिया में वे देश के वृहत्तर सामाजिक संघर्ष का हिस्सा बन रहे हैं? 

उनका संघर्ष वर्ग को लेकर नहीं है. उनका संघर्ष उस प्राकृतिक परिवेश की रक्षा को लेकर है जिसमें वे सहस्त्राब्दियों से रहते आए हैं. पर अब यह प्रकृति ही - जिसे वे अपनी माता समझते हैं- खतरे में है. पेड़ों को काटती टिम्बर कम्पनियाँ, नदियों में ज़हर घोलती तेल कम्पनियाँ- इन चीज़ों के खिलाफ उनका विद्रोह है. वे इसे वर्ग संघर्ष के तौर पर नहीं देखते. इसके बावजूद भी यह संघर्ष बहुराष्ट्रीय निगमों के खिलाफ है जिनकी रक्षा सरकार कर रही हैं. इसलिए हम समझते हैं कि यह वर्ग संघर्ष से सम्बन्धित ही है.


1968 की आपकी पुस्तक तिएरा ओ मुएरते में बहुत कुछ ट्रोत्स्की की विचारधारा है. क्या अब भी आप ट्रोत्स्कीवादी हैं? 
यह एक पोलेमिकल कृति है जो मैंने इसलिए लिखी क्योंकि हमारी बहस स्तालिनवाद के साथ थी- जिसकी नीति थी कि कानून के अन्दर रहकर काम किया जाए, न्यायिक व्यवस्था के द्वारा संघर्ष किया जाए इत्यादि. जबकि हमारी यह मान्यता थी कि क्रान्ति के लिए छापामार आन्दोलन ज़रूरी है. तो यह इन दो विचारों के बीच की बहस थी- एक तरफ सुधारवादी विचार और दूसरी तरफ छापामार-पद्धति समर्थक विचार जो मानता है कि जनता को खुद संगठित होना पड़ेगा और जब जनता फैसला ले कि हथियार उठाने के सिवाय दूसरा कोई विकल्प नहीं है तो हथियार उठाने होंगे. पर फैसला जनता का होगा न कि किसी समूह या पार्टी का.
मैंने ट्रोत्स्की का बचाव इसलिए किया क्योंकि संघर्ष स्तालिनवाद के खिलाफ था. क्या मैं अब भी ट्रोत्स्कीवादी हूँ? पता नहीं. कुछ अर्थों में हूँ और कुछ में नहीं. नौकरशाही प्रवृत्तियों के खिलाफ मार्क्स और लेनिन के क्रांतिकारी विचारों की हिफाजत करने में ट्रोत्स्की का विश्वास था. मार्क्सवाद-लेनिनवाद के नाम पर आगे बढ़ाए जा रहे स्तालिनवादी विचारों जैसे 'एक देश में समाजवाद' और 'प्रगतिशील बुर्जुआ' और 'अलग अलग चरणों में क्रान्ति' के खिलाफ उन्होंने विश्व क्रान्ति का बचाव किया.
ट्रोत्स्की की कही एक बात जो सच साबित हुई वह यह है कि अगर मेहनतकश अवाम ने नौकरशाही से ताकत नहीं हथियाई, तो नौकरशाही की जगह पूंजीवाद ले लेगा. और ऐसा ही हुआ. आज सोवियत कम्युनिस्ट पार्टी के प्रमुख डाइरेक्टर्स रूस के सबसे बड़े नवउदारवादी हैं. ट्रोत्स्की ने कहा था कि या तो मेहनतकश अवाम की जीत होगी या बुर्जुआ की. उन्होंने यह भी कहा था कि नौकरशाही कोई सामाजिक वर्ग नहीं और उसका कोई ऐतिहासिक भविष्य नहीं. दुर्भाग्यवश नौकरशाही की ताक़त को मेहनतकश अवाम ने नहीं तोड़ा, इसलिए उसे तोड़ा बुर्जुआ ने.
पर अब जब स्तालिनवाद नहीं है तो मैं ट्रोत्स्कीवादी क्यों होने लगा? मुझे इसकी कोई ज़रूरत नहीं महसूस होती. बेशक कुछ चीज़ें हैं जो मैंने मार्क्स से सीखी हैं, कुछ लेनिन से, कुछ ट्रोत्स्की से- और कुछ दीगर क्रांतिकारियों से, रोज़ा लक्ज़मबर्ग से, ग्राम्शी से, चे ग्वेवारा से. पर अब मुझे नहीं लगता कि ट्रोत्स्कीवादी पार्टी बनाना तर्कसंगत है. जिन युवाओं ने कल कॉन्फ्रेंस का आयोजन किया था - वे आज के सवालों का जवाब चाहते हैं. गुज़री सदी की पुरानी बहसों को पुनर्जीवित करने की आवश्यकता नहीं है. यही बहुत है कि अब भी भरोसा रखें कि दूसरी दुनिया संभव है. मैं उम्रदराज़ हूँ और अगर मार्क्स, लेनिन, ट्रोत्स्की और दूसरों के बारे में कुछ पढ़ा सकता हूँ तो बस इतना ही. मैं अब भी विश्वास रखता हूँ उठ खड़े होने में, संघर्ष करने में- न कि सरकार से याचना करने में, तो इस मायने में मैं अब भी ट्रोत्स्कीवादी हूँ. पर मुझे यह कहने की ज़रुरत नहीं महसूस होती कि "सब सुनो रे, यह ट्रोत्स्कीवाद ही सही जवाब है!"
और जब मैं अमेज़ॉन के आदिवासियों का वॅनगार्ड के तौर पर ज़िक्र करता हूँ, तो मेरा मतलब मार्क्सवादी-लेनिनवादी अर्थों में नहीं है, बल्कि यह कि दूसरों ने उनके तरीके अपनाने चाहिए. और जब मैं आदिवासी लोगों से बात करता हूँ, मैं 'समूहवाद' की बात करता हूँ न कि 'साम्यवाद' की.

पेरू में आपकी ख्याति एक छापामार योद्धा के तौर पर है जबकि वह आपकी ज़िन्दगी का एक मुख्तसर दौर था. वर्तमान स्थिति में सशस्त्र संघर्ष के बारे में आपका क्या विचार है?

मुझे लगता है कि अमेज़ॉनिको हमें सिखा रहे हैं कि संघर्षों को विशाल और शांतिपूर्ण होना चाहिए- मगर हम पर हमला हुआ तो हमें अपनी रक्षा करने का अधिकार है. नाकेबंदियों पर अमेज़ॉनिको तीर-कमानों, बरछी-भालों और ब्लोगनों से लैस होते हैं. पर वे उनका उपयोग अपनी और अपने इलाके पर धावा बोलने वालों से रक्षा के लिए करते हैं. अगर आप पर हथियारों से हमला किया जाए तो आपको हथियारों से अपनी रक्षा करने का अधिकार है.
मसलन, मैं सेंदेरो लुमिनोसो से सहमत नहीं हूँ- और न ही उनसे जो चुनावों द्वारा ताक़त हथियाने में विश्वास रखते हैं. चाहे हथियारों से हो या चुनावों से, दोनों ताक़त के लिए संघर्ष कर रहे हैं. इन अर्थों में मैं ज़पातिस्ता हूँ. मैं ताक़त हथियाने के लिए संघर्ष में विश्वास नहीं रखता, बल्कि मेरी आस्था ताक़त खड़ी करने में है. ताक़त खड़ी कर रहे हैं सिएरा के गाँव जो उत्खनन कंपनियों से लोहा ले रहे हैं. ताक़त खड़ी कर रहे हैं सेल्वा के आदिवासी जो अपने इलाके का नियंत्रण कर रहे हैं.
पर जब जनता को लगे कि उन्हें हथियारों से अपनी रक्षा करनी होगी तो उन्हें यह निर्णय लेने का अधिकार है. बोलीविया में, सांता क्रूज़ में दक्षिणपंथी जनता को शासन नहीं करने देना चाहते, उनके शांतिपूर्ण संघर्षों पर
गोलियां चलवाते हैं. तो जनता को इस शक्ति का सामना गोलियों से करने का, लोकतंत्र की रक्षा गोलियों से करने का हक़ है.

आप कहते हैं कि आज एक नया "औद्योगिक लातिफुन्डियो (इस्टेट)' उभर रहा है?

सही है. तटीय क्षेत्र में औद्योगिक पैमाने की बड़ी कंपनियाँ खेतिहर सर्वहारा का, जिनमें ज्यादातर संगठित नहीं हैं, भीषण तरीके से शोषण कर रही है. उन्हें कोई अवकाश नहीं मिलता, उनके पास कोई सामाजिक सुरक्षा नहीं है. और ये उद्योग एग्रोकेमिकल्स इस्तेमाल करते हैं जो ज़मीन को ख़त्म कर देते हैं. और यह सब आतंरिक उपभोग के लिए नहीं बल्कि संयुक्त राज्य अमेरिका को निर्यात करने के लिए है.

तो यह नया 'औद्योगिक लातिफुन्डियो' कृषि और उत्खनन दोनों में है?

बिल्कुल - कृषि, उत्खनन, तेल, टिम्बर. यह सब प्राकृतिक परिवेश को लूट रहे हैं. इन लुटेरे निगमों से छुटकारा पाने के लिए नए कृषि सुधार की ज़रूरत है.
पेरू और कोलंबिया के अलावा आज दक्षिण अमेरिका की लगभग हर सरकार थोड़ी-बहुत मात्र में वामपंथी हुई है. इस परिघटना को आप किस रूप में देखते हैं? 
संघर्ष तो जारी रहना चाहिए न? जैसे होन्दुरस के तख्ता-पलट के खिलाफ संघर्ष, सिएरा की उत्खनन कंपनियों, अमेज़ॉन की तेल कंपनियों के खिलाफ संघर्ष. संभव है अगले चुनावों में यहाँ पेरू में नवउदारवाद का कोई चाकर जीत जाए. मेरी दिलचस्पी सामाजिक संघर्षों में है जो जारी रहने चाहिए चाहे जो भी सरकार हो.

वेनेजुएला, बोलीविया, इक्वेडोर की सरकारों के बारे में आप क्या सोचते हैं? आपने कल रात कहा कि आप इन्हें 'अवस्थांतर की सरकारें' मानते हैं?

हाँ, बिल्कुल. साम्राज्य के खिलाफ विमर्श में शावेज़ और कोरिया और मोरालेस कभी कभी बहुत अच्छे लगते हैं. पर फिर भी हम कह नहीं सकते यह एकदम ज़मीन के लोगों की सरकारें हैं. मसलन, शावेज़ समूचे श्रमिक आन्दोलन को उनकी सरकार का औजार बनाना चाहते हैं. मगर आन्दोलन को स्वतंत्र रहना होगा और अपने विचार रखने होंगे. इसलिए मैं उनसे सहमत नहीं हूँ. और इसी वजह से मुझे वेनेजुएला में आमंत्रित नहीं किया गया. (हंसते हैं).
बोलीविया में संसदीय समिति के गठन के बाद हुई रायशुमारी में हुए समझौते मुझे पसंद नहीं जिसमें उन्होंने यह फैसला लिया कि पांच हज़ार हेक्टेयर का एक लातिफुन्डियो होता है. पेरू में ऐसा कहना कुत्सित माना जाएगा. यह मीडिया लुना की प्रतिक्रियावादी सरकारों के साथ हुआ समझौता था.
और जब सांता क्रूज़ में आज़ादी के लिए रायशुमारी हुई तो मोरालेस ने कहा कि बोलीविया के सभी लोग सांता क्रूज़ के लिए आगे आयें और इस अवैधता को रोकें. बोलीवियाई लोग आगे बढ़ रहे थे, पर फिर मोरालेस ने कहा नहीं, जाना ठीक नहीं होगा. काम्पेसिनो रास्ता रोकने के लिए तैयार थे पर मोरालेस ने कहा, नहीं कृपया ऐसा न करें.
सामाजिक आन्दोलनों पर इन रुकावटों से मुझे चीले में अयेन्दे द्वारा लगाई गई रुकावटों का स्मरण होता है जिसने पिनोशे-प्रभाव की मदद ही की. यह रुकावटें प्रति-क्रन्तिकारी प्रवृत्तियों की प्रतीक हैं. मैं इनका विरोध करता हूँ. पर इन प्रवृत्तियों का यह मतलब नहीं कि बोलीविया की सरकार प्रति-क्रन्तिकारी है- ना! आदिवासी समितियों का गठन और दीगर घटनाएं- प्रगति की सूचक हैं. मगर यह भी समग्र प्रभाव प्रदर्शन नहीं है.

तो जब आप कहते हैं 'अवस्थांतर की सरकारें' तो किस अवस्था की ओर?

सभी लोगों की सरकार. बोलीविया और इक्वेडोर और वेनेजुएला में 'सुशासन समितियों' की ओर.

यह तो आप चिआपस के ज़पातिस्ता विद्रोहियों की संचालन समितियों का सन्दर्भ दे रहे है.
तो ज़पातिस्ता आन्दोलन को आप आदर्श के तौर पर देखते हैं?


मैं ज़पातिस्ता आन्दोलन का पूरी तरह समर्थन करता हूँ; वह मुझे सही रास्ता लगता है. जिस तरह का समाज हम भविष्य में बनाना चाहते हैं वे उसका उदाहरण पेश करते हैं. ऐसी सरकार जो लोगों के प्रति उत्तरदायी है, वे उसका उदाहरण पेश करते हैं. सुशासन समितियों का कोई आदिवासी नेता अगर ठीक काम नहीं कर रहा है तो उसे वापिस बुलाया जा सकता है. और ज़पातिस्ता राष्ट्रीय मुक्ति सेना इस क्षेत्र पर शासन नहीं करती. वह सुनिश्चित करती है कि मेक्सिको की राष्ट्रीय सेना जनता को सता न पाए. सुशासन समितियां शासन करती हैं, शिक्षा प्रदान करती हैं वगैरह वगैरह, सरकार से एक भी पैसा लिए बिना.
सान अन्द्रेस समझौते के ज़रिये वे इस व्यवस्था को संवैधानिक मान्यता दिलाना चाहते थे, और जब मेक्सिको की संसद ने सरकार के प्रस्तावों के पक्ष में इस बात को नामंजूर किया तो उन्होंने मेक्सिको की सभी राजनैतिक पार्टियों को गद्दार घोषित कर दिया और तब से वे किसी भी चुनाव में हिस्सा नहीं लेते. इसके बजाय 2006 के राष्ट्रपति चुनावों के दौरान उन्होंने अदर कॅंपेन चलाया, और देशभर में घूम घूम कर जनता से पूछा उनकी क्या समस्यायें हैं, और उनका सामना कैसे किया जाये. किसी भी प्रकार की भाषणबाज़ी के बिना जनता के साथ मिलकर काम किया.
वे यह सब अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी कर रहे हैं. मसलन, न्यू यॉर्क के लोग जो अपने घर बचने की कोशिश कर रहे हैं, वे भी इस अदर कॅंपेन में सहभागी हुए. इसी वर्ष ज़पातिस्ता इलाके में हुए फेस्टिवल ऑफ़ डिग्नीफाइड रेज में इस ग्रुप का एक वीडियो दिखाया गया था.

हाँ, अल बरियो का मूवमेंट ऑफ़ जस्टिस. आप इस बैठक के लिए मेक्सिको गए थे?

हाँ. मुझे ताक़त खड़ी करने का यह सही तरीका प्रतीत होता है.

पर मेक्सिकन वामपंथी दलों ने ज़पातिस्ता की चुनावों में हिस्सा लेने से इन्कार करने की नीति की आलोचना की है जिसके कारण दक्षिणपंथी जीत सके. 
पर सभी पार्टियाँ जनता को मूर्ख बनाने की कोशिश कर रही हैं. चुनाव ताकत खड़ी करने का जरिया नहीं हैं. सिएरा के समुदाय जो उत्खनन कम्पनियों का सामना कर रहे हैं, और अमेज़ॉन की जनता जो तेल कंपनियों से लोहा ले रही है-वे ताकत खड़ी कर रहे हैं, ज़पातिस्ता की तरह.

आपने कल रात कहा कि साठ के दशक में आप अधिक न्यायपूर्ण समाज हेतु संघर्ष कर रहे थे, पर आज तो यह भीषण मुद्दा है मतलब मनुष्य जाति का अस्तित्व? 
सही है. अमेज़ॉन घाटी के बाशिंदे ग्लोबल वार्मिंग के खिलाफ संघर्ष कर रहे हैं. आप उनसे पूछेंगे तो वे कहेंगे कि वे अपनी भूमि की रक्षा के लिए संघर्ष कर रहे हैं. मगर वास्तव में वे ग्लोबल वार्मिंग के खिलाफ भी संघर्ष कर रहे हैं. आदिवासी लोग पिछले पांच सौ वर्षों से एको-सोशलिज्म के लिए लड़ रहे हैं.

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अनुवाद: भारत भूषण तिवारी

3 comments:

Rangnath Singh said...

बहुत ही अच्छा इंटरव्यु है। प्रस्तुती के लिए आभार।

उम्मतें said...

बेहद चिंतनपरक साक्षात्कार!

प्रस्तुति के लिए आपका और अनुवाद के लिए भारत भूषण तिवारी का आभार !

उम्मतें said...

जो था उससे बेहतर कल के लिये ...अनंत शुभकामनायें !
Ali
(31.12.09)